श्री चैत्य वंदन भाष्य | Shri Chaitya Vandan Bhashya

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Book Image : श्री चैत्य वंदन भाष्य  - Shri Chaitya Vandan Bhashya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) विवेचन अगपूता अप्रयूता झौर भावदूता ये सीन प्रकार ही पूजा है। ये सीनों थनुकम स पुष्प. आादार और स्तुतेस्प पूजानिक यदलाती हैं । या पंच प्रकारी अप्रमकारी ओर सर्पप्र्धारी पूजानिर होती ट! रपम प्रमु जगपूता करनेवाले व्यक्ति को (१) सनपुद्धि (२) बचने शुद्धि (३) कपउदि (२) व्रदुद्धि {५) भूमिशुदि (६) पूदकरि उपकरणों की थुद्धि और (3) नांति का धन इस प्रकार सात शुद्धि रत! चाहिये । पथात्‌ एर्‌ धती, दृमरा उनरामने (गतान कमा हो जिसके ढारा हीथ (आठ) प्रतका मुखकोश बदा जावे) इस प्रकार दो वस्त्र पूजा के समय रखना चादिय । स्रियो दनो तीन द्र द मुख वोशका स्माल (अष्टन जिम दाब) इस तर्‌इ चार पत्र का उपयोग करके पूजा वरना चाद्ये प्रभु के मा पर जिठ दब्यों से पूजा की जाती है. उसे लगपूना पढ़ते हैं। अग पर पूचन करने के द्रव्य (१) पचाइत (दूध दही, थी, शइर जन) । 9 चदने (३) पुष्प । प्रमु के ससुख रखकर जिन द्रव्यो मे पूना की जाती हैं उसे थम्रपूजा रुदते हैं। अप्रपूजा करने थे दव्य (१५ घूप २ दीप, इ अचत, ४ नयेय, हे फ्लो इस प्रकार यदद अष्ट ध्रकार की पूजा आठ कमों का तय करनेवाली है । भावदूता ( चैयवन्दन रतबनादि ) मोच देनेवाली है! १ पाचया अयष्यात्रिक भागिञ्ञ अपत्यतिय, पिंडस्थ पयत्थ रुपरदियत 1 छुउमत्थ केयलिसच सिद्ध चेध॒तस्सत्थो ॥ ११॥ नदवणन्चगेहिं छडमत्थ, चत्थ पडिहारगेदिं केचलिय । पत्िय कुस्तगोहिम, जियुस्स भाधिज सिद्ध ॥ १९ ॥




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