पार्वतीके कंगन | Parvati Ke Kangan

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Parvati Ke Kangan by ललित शुक्ल - Lalit Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कविका घर उस कब्र की लम्बाई नो गज है । नौ गज यानी अठार्‌द हाय। सौग बतलाते है कि यदि नौ गजी कपड़ा उस पर चढाया जाता है तब भी छोटा हो जाता है । वहाँ अगर कब्र की लम्बाई के बारे मे कुछ पूछताछ की जाती है तो विश्वास वी मुद्रा म उत्तर मिलता हैं--“साइब, एक बार का वाकया है कि नौगजी मजार सडक वी और बढ़ती जा रही थी । अरे यही बडी सडक जो राधबरेली से जापस होती हुई सुलतानपुर जाती है । मजार की रफ्तार तेज थी । एक दही बंचन वाली की निगाह्‌ पड गयी । अचमे में बह चिल्ला पडी, “अरे, यह्‌ मजार तो बढ रही है 1” फिरिक्णथा। मजार वही फी वही ठक गयी । तिलभरभी मागे नही बढ़ी । जापस कस्बे का सबसे बडा आश्चय है यह मजार। और ऐसी ही मजार यहा कई है । 'मजार' शब्द पूल्लिंग है पर लोकरुखि को कौन चनौती दे 1”” तखनङ-वाराणसी रेलमाग पर रायबरेली भौर अमेटी स्टेशनो वे वीच जायसं स्टेशन है } यह स्टेशन भी बहादुरपुर में है जो जायस करवे से लगभग दो क्लोमीटर की दूरी पर है । जायस के करीब ही कासिमपुर हाल्ट है । यहाँ केवल साधारण पैसेंजर गाडिया रुकती हैं। जायस सलोन मागर पर नसीराबाद कस्वा है । गाँव वी जनता अभी भी जायरा और नसीराबाद को बडा शहर, छोटा शहूर कहती है । दोनो करवों का रायबरेली, प्रतापगढ भौर सुल्तानपुर जिलो मे महत्त्वपुण स्थान है । इसी जायसमेहिदीके प्रसिद्ध सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी का मकान है जो अब खंडहर भी नहीं रह गया है । अवशेष पर अधी भी तालनची लोगो की निगाहें टिकी हैं । बची खुची दीवारो की लखौरी इटो की लोना खाये जा रहा है। जिस गति से उस महयकविदै घर की निशानियां निट रही है, बहत थोड़े समय मे वहाँ वो खेह मारी मे स्मृतियो का पूज गल जाएगा मौर पछठताने वे अतिरिक्त जायसी प्रेमियों के लिए कुछ नही बचेगा। दीवार काएक छोटा हिस्सा देखकर आभास हो जाता है कि जायसी का मकान एक हुवेली के रूप में थी। मसार अहमद सिद्दीकी बतलाते हैं कि उनके घानिद अब्दुलस्तार से




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