मध्यकालीन भारतीय कलाएं एवं उनका विकास | Madhyakalin Bharatiy Kalaen Evm Unaka Vikas
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारतीय चित्रकला की परम्परा श्रत्यन्त प्राचीन
है। चित्रकला संबंधी उल्लेख उपनिषदों मे मिलते
हैं। बौद्ध ग्रन्थ विनयपिटक में जो तीसरी-चौथी
शताब्दी ईसा पूवं पाली मे लिखा गया, राजा
प्रसेनजित के चित्रागार का वणन है। महाउम्मग
जातके मे गंगा पर वने महाउम्मग महल
के चित्रों का उल्लेख है । महाभारत श्रौर
रामायण काल में भी महलों श्रौर मन्दिरों में चित्र
बनाए जाते थे । कौटिल्य भी चित्रकला से भली-
भाँति परिचित थे श्रौर उन्होंने अपने अ्रथंशास्त्रमें
विभिन्न चित्रविधियो का उल्लेख किया है । पुराणों
में ऐसी चित्र-विधाश्रों का. विस्तृत वणन है।
विशेषकर विष्णु-धर्मोत्तर पुराण के चित्र-सूत्र में
चित्रकला का विशद् विवेचन किया गया है । शित्प-
शास्त्रों में वास्तुकला श्रौर प्रतिमाविज्ञान के साथ-
साथ ही चित्रकला का वणेन किया जाता था।
संस्कृत साहित्य मे चित्रकला सम्बन्धी बड़े
रोचक उद्धरण मिलते है । कालिदास ने ग्रभिज्ञान-
साकुन्तल, विक्रमोवशीयम, कुमारसम्भव, मेघदूत
श्रादि लगभग श्रपने सभी ग्रन्थों में चितव्रशालाग्रोंका
वरन किया है । बाणा की कादम्वनी भ्रौर हषंचरित
के प्रत्येक महल मे भित्ति-चित्रोसे श्रलंकरण का
वर्णन मिलता है--
“्रालिख्य गृहैरिव वहुवर्णण चित्रपत्र शकुनिशत
संशोभितंः''
श्री हषे के नैषध-चरित मे चित्रकला को यही
महत्त्व दिया गया है । भवभूति तीनों प्रकार के चित्रो
का वर्णन करते हैं-पट्ट, पट श्रौर कुड्य (भित्ति) ।
वास्तव में सौन्दर्यानुभूति के क्षेत्र में चित्रकला को
ग्रन्य शित्पो से उत्तम समा जाता था--
“चित्रं हि सवे शिल्पानां मुखं लोकस्य च प्रियम्”
वात्सायन ने भ्रपने कामसूत्र में चित्रकला के छः
अंगों का वर्ॉन किया है :--
रूपभेद
. प्रमाणम्
भाव
. लावण्य-योजनम्
सादृश्यम्
. वणिका-भंग
चित्र-सिद्धान्तो के इस सूक्ष्म विवेचन सेयह
स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारत में चित्रकला
की अ्रत्यघिक प्रगति हो गई थी श्र इस कला का
विधिवत् शास्त्रीयकरण हो गया था । भारतीय
चित्रकार वतना भ्र्थात् प्रकाश और छाया के सिद्धान्त
से भी भली भाँति परिचित था । इसका बन ११वीं
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