जैन समाज दर्पण 2463 | Jain Samaj Darpan 2463

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के वन्दे वोरम्‌ू जगदू गुरुम्‌ # जैन-समाज-द्पणु बन्द्ना ज्ञान-बुद्धि-विवेक के जो प्राथमिक आधार हैं । लोक हितकर आत्म-रत भानन्द के भण्डार हैं ॥ है महा मड्लू मयी जिनकी विमल अभिव्यज्नना । प्रथम उन जेनेन्द्र को श्रद्धा सहित है बन्दना ॥ १ ॥




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