जैनसिद्धांत - प्रवेशिका | Jainsiddhant - Praveshika
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प
(७)
तिण्डुगुगव्वयाणे, चउण्हं सिक्लावयाणं, बारतविहस्त
साबगधम्मस्त, जं खंडियं, जं विरा्हियं तस्ष
मिच्छामि दुरकवकडं ।
मूल शब्द
इच्छामि ठाइउं -
काउस्सग्गं--
जो मे-
देवसियो-
अद्यारो कभो--
काडगो-
वाइगो--
माणसिओ--
उस्मुत्तो--
उम्पग्गो--
अकप्पो--
भकरणिज्जो--
दुज्काओ--
दुविविचितिओ -
गणायारो--
अगिच्छिअन्वो -
प्रथं
मैं करने की इच्छा करता हूँ !
एक स्थान में स्थिर रहनें रूप कांयो-
त्सगं को ।
जो मैंने ।
दिन सम्बन्धी ।
अतिचार (दोप ) किया हो ।
कायां सम्वन्धी 1
वचन सम्वन्धी ।
मन सम्बन्धी ।
सूत्र-विपरीत कथन किया हो ।
उन्मा (जैन मागं से विपरीत) का
कथन किया हो ।
अकल्पनीय ( नहीं कल्पने योग्य )
नहीं करने योग्य कार्य किया हो ।
दुष्ट ध्यान किया हो ।
दुष्ट चिस्तन किया हो 1
अनाचार का सेवन किया हो- नियमों
का सर्वेथा भंग किया हो 1
इच्छा नहों करने योग्य पदाथ की
इच्छा की हो ।
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