प्रश्नाव्याकरण सूत्र | Prachanyvyakram Sutrm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १७ ) सकता । बहुत कुछ विचार चिन्तन करने पर भी यह प्रश्न अनुत्तरित ही रहं जाता है! हाला कि टीकाक्रारो ने सघ रक्ना आदि कारणविशेप के नाम पर पापशरुतसे सम्बन्धित उक्त सव विपयो का खुलकर समर्थन किया है 15” वतमान प्रदन व्याकरण भ्ाचीन प्ररनव्याकरण कव लुप्त हुआ, निश्चित रूप से कुछ नही कहा जा सकता । आगमों को पुस्तकात्ढठ करने वाले जाचा्यं दैवद्धि गणी ने इस सम्बन्ध मे कुछ भी सुचना नहीं दी हे। समवायाग जादिमे जिस प्रश्न व्याकरण का उल्लेख है, वह उनके समक्ष विद्यमान था; या प्राचीन श्रुति परम्परा से जैसा चलता चला आ रहा था वैसा हो ज्यों का त्यो श्रुतविपय समवायाग आदि में लिख दिया गया, कुछ स्पष्ट नहीं होता । हा, इतना स्पष्ट है, वर्तमान प्रश्न व्याकरण के चिपय की तत्कालीन आगमो मे कोई चर्चा नहों हे 1 आचार्य जिनदास महत्तर ने शक सवत्‌ ५०० की समाप्ति पर नन्दी सूत्र पर चूणि की रचना की हे ।** उसमे सर्वप्रथम वतमान प्रष्नव्याकरण कै विपयसे सम्बन्धित पाच सवर आदि का उल्लेख है ।** इस उल्लेख के वाद फिर वही परम्परागत एक सौ. भाठ अगुप्ठ प्रश्न ओर वाहु प्रण्न आदिका वर्णेन किया ह। लगता हे, जिनदाम गणी के समक्त प्राचीन प्रश्न व्याकरण नही था । उसके विपय की चर्चा उन्होने केवल परम्परापालन की दृष्टि से करदी है । वास्तविक प्रश्न व्याकरण उनके समक्ष प्रस्तुत प्रश्नव्याकरण ही था, जिसके स्वर आदि विपय का उन्होने सर्व प्रथम उल्लेख किया हे । इसका अथं यह हं कि शक सवत्‌ ५०० से पूर्वं ही कभी प्रस्तुत प्रश्न व्याकरण सुत्र का निर्माण एव प्रचार-प्रसार हो चूका था और उसे अग साहित्य मे मान्यता मिल चुकी थी । प्रश्न व्याकरण का चिषय परिवतेन क्यो ? भराचीन प्रश्न व्याकरण के ज्योतिप, मन्त्र, तन्व, विद्यातिशय आदि विपयो का परिवर्तेन कर॒ अध्व तया सवर रूप नवीन विपयो का क्यो सकलन किया गया, ---------------------------- २०--सवेमपि पापश्नूत सयतेन पुण्टालवनेन असेव्यमानमपाप्न्‌ तमेवेति 1 --स्यानाग वृत्ति € वाँ स्थान २ १--सकराजातो पचयु वर्ष॑शतेवु नन्यध्ययनचूर्णो समाप्ता 1 --नन्दी चणि, उपसहार ३२--पण्डावागरणे अगे पचस्वरादिक्ा भ्याख्येया, परप्पवा्दिणो य अगरदटूढ-बाहुपत्ति- णादियाण पसिणाण अदृदुत्तर सत नन्दी चूणि




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