आरोग्य निकेतन | Aarogya Niketan

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Book Image : आरोग्य निकेतन  -  Aarogya Niketan

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ताराशंकर वंद्योपाध्याय - Tarashankar Vandhyopadhyay

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हसकुमार तिवारी - Haskumar Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के सेवा-जतन मे कोई कोर-कसर नही की, श्रौर श्राज वह मुझके”'*। रो पडा वहू। डाक्टर ने कहा--तो चलो, देख ही झ्राऊं ! डाक्टर नगे ही बदन चल पड़े । व्यस्त होकर मोती बोला--ग्रौर श्रापका छाता ? __छाते की जरूरत नहीं । फिस-फिस पड रहा है पानी, इसमें छाते का काम नहीं पडेंगा । डाक्टर बो फशिल पाँवो मद-मथर गति से चलने लगे । मोती लपककर निकल गया--मै जरा पहुँचकर घर खबर कर दूँ चाचा ! --जाम्रों ' पहले पहुँचकर मोती को जरा घर-प्रॉँगन साथ-सुथरा कर देना था, वच्चो को सँभाल देना था । माँ शायद मैले-कुचैले कपडो मे लिपटी पडी होगी, उसे साफ कपडे पहना देने थे । डाक्टर का न जाना भी क्या था दरवाजें पर डाक्टर ने गले को साफ किया श्रौर श्रावाज दी--मीती ! मोती ने जवाब दिया--जी, श्राया ! झाया यानी जरा देर श्र सब्र करें डाक्टर चाचा, तैयार नही हो पाया हूँ । डाक्टर खडे रहे । अच्छा ही हुमा, सामने दूर तक साफ दिखाई दे रही थी वह कच्ची सडक । इसी सडक से सफेद कपडे का छाता झोढे सिताव मुखर्जी आ रहा होगा । उसके एक हाथ में होगा वह छाता, दूसरे मे दुआी हुई लालटेन और शतरज की पोटली । कहाँ रा रहा है सिताब ? मोती ने पुकारा--अन्दर आइये चाचा बूढ़ी तकलीफ से कातर हो पडी है । मोती ने सच ही बताया था कि बड़े कष्ट में है । घुटना सुज गया है । सुजन पर डाक्टर ने हाथ रक्‍्खा । वुढिया तिलमिला उठी भर डाक्टर चौक पड़े । बुखार भी है शायद ! घुटने पर से हाथ हटाकर बोले, जरा नब्ज देखूँ ! डाक्टर नाडी देखने लगे--यह बुखार कब से है ? मोती बोला--बुखार कहाँ है चाचा ? --बुखार है । नव्ज देखते-देखते ही वे बोलें । घूंघट के झन्दर से ही मोती की माँ फुसफुसाई--वह ददे की वजह श्दे




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