महाश्रमण महावीर | Mahashraman Mahaveer

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Mahashraman Mahaveer by सुमेरचन्द्र दिवाकर - Sumeruchandra Divakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ १ ) भगवान महावीर के पिता राजां सिद्धायै की छोटी बहिन का भिषा हुआ है । अत्र भगवान अद्ाषीर का जभ्मोरपष हो रदा था, षव कह कुरुडपुर श्राया था श्रौर कुण्डपुर के राजा सिद्धाधे ने इनदर के तुल्यं पराक्रम को धारण करने बाले इस परम मित्र का अच्छा सत्कार किया थां। इसकी यशोदया रानी से उत्पन्न यशोदा नाम की पत्रित्र पुत्री थी । जितशत्रु को यहद तीन्र भावना थी कि बह श्रनेक कन्या सहित यशोदा का विवाह भगवान सहाभीर के सांथ सम्पन्न होता देखे ।” ( सर्ग ६, १-८ ) महाराज सिद्धार्थ ने अनुकूल समय देख जब भगवान के विवाह को चर्चा चलाई, तब उन बीर प्रमु ने श्त्यन्त नम्रतापूर्क निवेदन किया, “हमारे पूर्व तीथेक्वर पार्वनाथ हो चुके हैं। उन्होंने विवाह के बन्धन को इसलिये स्वीकार नदीं किया कि उनकी आयु केवल सौ वर्ष थौ । उनके पूर्वचर्ती तीथकर नेमिनाथ ने भी ब्रह्मच त्रत लेकर संसार के विषयों से श्रपने मन को विसुक्त बना स्व-पर कल्याण किया । मरी श्रायु केवल ७२ बे दै। इस अल्प जीबन मे विपयों कौ दासता का परित्याग कर मै पूं ब्रह्मचथे की साधना करना चाहता हूँ । अवर मै कर्म शत्ुभों श्ना नाश कर से सुख श्रौर शांति को प्राप्त करना चाहता हूँ; इसलिये झापके दर प्रदर्शित राग के पथ पर प्रवृत्ति करने में मैं छासमर्थ हूँ ।” वे नारी जाति को माता, बहिन और सुता ॐ सिवाय अन्य रूप में नहीं देखते थे । इससे वे बालत्रह्मचारी रहे । भगवान की जन्म कुन्डली का परिशीलन कर ज्योतिष शास्त्रज् मी कहते हैं, कि उनके विधादद की योग नदीं था । उनके छिव की कल्पना श्रागम ॐ विपरीत है । वैरस्य जागरण वर्धमान मगवाने की विषयों के प्रति धिरक्ति विरोषस्पसे वर्धमाने हो शी थी शरीर वे भध्यात्मिक चिंतन द्वारा भचनागोचरे छख का भी आास्थादम कर रहे थे । धीरे-धीरे ३० दपं भीक गये । भगहने शस का भावमन हृशमा । एक दिन उन भ्रषु की हृष्टि




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