शरत साहित्य | Sharat Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चाम्डनेकी बेरी ७
कहा था क्रि असन, वजीफेके रोमको गगाजीमे बहा दो ओर घरे लढ़केकी तरह
घर बटो । विल्यत मत जाओ ¡ पर, उनकी वात क्या सुनी उसने ¶ उल्टा
विलयत जति बखत उनका मजाक उड़ा गया | बेला, यदि विलायत जानेसे
जात जाती है, तो जाय, मेरे छिए वही अच्छा । परन्तु, गोलोक चटरजीके समान
मेद-बकरियाँ विठायत भेजकर पैसा पैदा करना मेरा काम नहीं, और न समाजके
सिरपर सवार होकर लोर्गेंकी जात मरना ही मेरा पेशा है। उफू, मैं अगर उस
चखत होती तो मरे झाट्टके छोकरेका मुँद सीधा कर देती । जो गोठोक चटरजी
मात खाकर गोबर सुँह-हाथ धोति हैं, उनको जो है सो--
जगद्धात्रीने विनीत कठसे कहना चाहा--पर अरुन तो कभी किसीकी निन््दा
नहीं करता मौसी ए
“तो कया मैं झूठ बोल रद हूँ ? और कया चटरजी भइया--”
^“ नर्द न्दी, वे क्यो इट बोल्ने लगे | पर लोग भी तो बहुत-सी बातें बढ़ा
न्वदाकर कह आति रै | ”
* तेरी तो बस एक ही बात है जग्गो ! लोगॉको खा-पीकर कुछ काम थोड़े दी
है जो गये दंगे बाते बढ़ा चदाकर कदने,--अच्छा, बह निरायत जाकर ही कौन-सी
दिगबिजै कर लाया बता * सीख आया किसानोकी विद्या । सुनकर हँसी आती है ।
चकरवरती दै ओर चदि जो हो, है तो बाम्हनका दी लढका । देसमे क्या किसान
थे नहीं * अब कोई पूछे उससे, क्या तू हक जोतने जायगा खेतेंमिं ? राम राम,
उसे मोत भी न आई ! ”
रासमणिके कठस्वरका तीत्र सौरम क्रमशः दूर तक व्याप्त होनेकी तैयारी कर
रदा था, गन्ध पाकर कहीं मुदछेकी समझदार मधुमक्खियेंका झुड न आ पहुँचे,
इस डरसे जगद्धात्रीने धीरेसे कद्दा--खद़ी खड़ी क्यों बतला रही दो भोसी, चलो
रा, भीतर चलकर बैठो न ।
* नहीं नहीं, बहुत अबेर हो गई हे, अब बेहूँगी नहीं । बिटियाको भी नह-
चना है। दूठेकी छुकढ़िया भाग गई न १ » क
“ हूँ दादी, तुम जब बाते कर रहीं थीं, तभी चली गई । पर उसने मुझे
छुमा नद्दीं--”
^“ किर “ नहीं कद रही है हरामजादी ।---पर जग्गो, तुझसे बिनती करती हूँ
बेटी, मुद्छेमें दूले-बाग्दी मत बसा । जमाईसे भी कहना | ”
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