हिन्दी साहित्य का बृहत इतिहास प्रथम भाग | Hindi Sahity Ka Brhat Itiyash Pratham Bhag

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हिन्दी साहित्य का बृहत इतिहास प्रथम भाग  - Hindi Sahity Ka Brhat Itiyash Pratham Bhag

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ.राजबली पाण्डेय -dr.rajbali pandey

Add Infomation About. dr.rajbali pandey

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( £ ) शरदेव, विरिष्टादैत, दताद्रैत, शद्ादैत-का श्रवलंबन कर श्रपने साहित्य का प्रचार छिया । पीठिका के चतुथ खंड का संबंध कला से है । कला मूतं रूपों में प्रायः उन्हीं विषयों श्रौर भावों का निरूपण श्रौर श्रभिव्यक्ति करती है जिनका निरूपण श्रौर अभिव्यक्ति साहित्य शब्दचित्रों के सहारे करता है, श्रतः दोनों का बहुत निकट का संबंध है। इस खंड के प्रथम श्रध्याय में स्थापत्य की विविष शेलियों--नागर, द्वाविड, बेसर तथा मिश्र--का वणन है श्रौर साथ ही उसके प्रकारों का भी उल्लेख है, जिनमे मंदिर, स्तूप, स्थापत्य, चेत्य, विहार, स्तंभ, श्रावास, प्राम, नगर, दुर्ग, राजप्रासाद, सावंजनिक श्रावास, वापी, तडाग, दीर्षिका, कृप, श्रादि ई । धार्मिक श्राघार पर भी स्थापत्य के विविध रूपों का वर्गीकरण हुश्वरा है । द्वितीय श्रष्याय मे मू्तिकला के उदय श्रौर व्यापकता तथा उसकी शेलियो श्रीर प्रकारों का परिचय दिया गया है | प्राङ्मोयं युग से केकर श्राधुनिफ युग तक इस कला की श्रजस्र धारा भारत में बहती रही है। मौर्थ, गाधार, माधुर एवं गुप्त कालीन मूर्तिकला श्रपने कलात्मक सौदयं श्रौर विरोषताश्र के लिये प्रसिद्ध है। परंतु मध्ययुग में इसका श्रसीमित विस्तार हृश्रा । बहुसंख्यक धामिक सप्रदार्योने श्रपने श्रपने देवमंढल फो देव, देविर्यो, पादो, श्रायुधौं श्रौर श्रलंकरणो से भर दिया । इससे कला का प्राण दबसखारहाथा, कितु तच्तक णी ठेनी कफो श्रपना कोशल दिखाने का श्रपार श्रवषर मिला । मूर्तिकला की वह प्रवृत्ति मध्यकालीन साहित्य के समानांतर जा रदी थी। तृतीय श्रष्याय में चित्रकला का परिचय है । इसकी परंपरा प्राचीन होने पर भी इसके नमूने बहुत परवर्ती हैं श्रौर सभी काल के नहीं मिलते । श्राधार की दृष्टि से यह मध्यम व्यायोग है श्रौर शीघ्र नश्वर । स्था- पत्य तथा मूर्तिकला तो प्रस्तर का सहारा लेकर चिरस्थायी होती दें श्रौर साहित्य तथा संगीत श्रमर शब्दों श्रौर ्वनियों के माध्यम से युग युग तक प्रवाहित होते रहते ई । परंतु चित्रकला के श्राधार्‌) पट श्रयवा पत्र ( कपड़ा श्मयवा कागज च श्रस्प्राण होने के कारण बहुत काल तक नही बने रह सकते । चित्रकला भी जहाँ प्रस्तर श्रौर धातु का सद्दारा छेती है वहाँ दीर्घायु होती है, जैसे श्रजंता, एलोरा श्रौर बाघ की शुद्दाश्रों के मिक्तिचित्र । भारतीय चित्रों शीवन के बहुल श्रौर विविध श्रंगों का चित्रण हुआ है। कहीं कहीं तो साहित्यिक परंपरा के प्रदशन के लिये चित्रों का उपयोग किया गया है । किंतु चित्रों की परंपरा स्था- पित हो जाने पर साहित्य स्वयं उनसे समृद्ध हुश्रा है । श्वतुर्थ श्रष्याय में संगीत के क्रमिक विकाठ का संचित वंन दै। साहित्य श्रौर संगीत का संबंध बहुत ही पनिष्ट दै । संगीत श्रादिम काल से मनुष्य की मावामिव्यक्ति का -सहज माध्यम रहा हे। सादित्य के गेय अंश का जनता पर व्यापक प्रभाव पडता श्राया है। हिंदी का संत ठादित्य तो संगीत का श्राकर है। कला के विवरण में साहित्य की




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now