नागफनी का देश | Nagfani Ka Desh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.06 MB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand) कैसे श्रजीच आदमी से पाला पड़ा | इसी जिन्दगी के लिए;
मैंचे हैडी को नाराज किया था ? उनको झादमी की ज़्यादा
पहचान थी । उन्होने तमी कहा था, वेला तू ग़लती कर रही
है। यह आदमी किसी काम का नहीं है। कुछ करेगा-घरेंगा
नहीं | इसके संग तू सुखी नहीं रहेगी | एक बार फिर सोच
ले...मगर उस वक़्त तो बेला पर पागलपन सवार था । उसे
सोचने की फुर्सत कहाँ थी । मैंने कहा, डैडी, श्राप नहीं जानते
...मंगर डैडी जानते थे | झ्ाखिर न वद्दी जो उन्होंने
कहा था । तजुर्वा बड़ी चीज़ है। किस काम की है मेरी
जिन्दगी । क्या मिला सुक्के, कौन सा सुख ! और तो श्र,
खर्च तक की तंगी होती है । पता नहीं सारा दिन कहाँ घूमते
रहते हैं । दोपहर को खाना खाने की भी उन्हें फुरसत नहीं
सिलती । कहने को सभी से उनकी राह-रस्म है । शहर के
तमाम नामी-गरामी, 'घनी-घोरी लोग इन्हें बुलाते हैं। श्र ये
जाते हैं । सभी तो उनके अपने आदमी हैं। कौन है जिनके
यहाँ वह नहीं जाते १ मगर कमाई ! वही ढाक के तीन
पात । कमी तीन सौ घर में देते हैं. कमी साढ़ें तीन सौ । श्रौर
समझते हैं क़िला जीत लिया | बड़ा ताज्जुब होता है उन्हें कि
इतने में घर का खर्च नहीं चलता । कहते हैं तीन दही तो
उ्ादमी हैं । मगर ज़रा वक़्त को भी तो देखिये । किस मुश्किल
से मैं घर का खच॑ चलाती हूँ मेरा दिल जानता है । खाने-
पहनने का, साज-सिंगार का शौक किसके दिल में नहीं होता
मगर सुसकसे कसम ले लो जो मैं एक कौड़ी झ्पने किसी शौक
पर खर्च करती दोर्ें । सारी उमड़ों को एक सिरे से मैंने दफ़ना
दिया है। न सुकके गहने का शौक्क है न कपड़े का न कहीं
डे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...