नागफनी का देश | Nagfani Ka Desh

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Nagfani Ka Desh by अमृत राय - Amrit Rai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कैसे श्रजीच आदमी से पाला पड़ा | इसी जिन्दगी के लिए; मैंचे हैडी को नाराज किया था ? उनको झादमी की ज़्यादा पहचान थी । उन्होने तमी कहा था, वेला तू ग़लती कर रही है। यह आदमी किसी काम का नहीं है। कुछ करेगा-घरेंगा नहीं | इसके संग तू सुखी नहीं रहेगी | एक बार फिर सोच ले...मगर उस वक़्त तो बेला पर पागलपन सवार था । उसे सोचने की फुर्सत कहाँ थी । मैंने कहा, डैडी, श्राप नहीं जानते ...मंगर डैडी जानते थे | झ्ाखिर न वद्दी जो उन्होंने कहा था । तजुर्वा बड़ी चीज़ है। किस काम की है मेरी जिन्दगी । क्या मिला सुक्के, कौन सा सुख ! और तो श्र, खर्च तक की तंगी होती है । पता नहीं सारा दिन कहाँ घूमते रहते हैं । दोपहर को खाना खाने की भी उन्हें फुरसत नहीं सिलती । कहने को सभी से उनकी राह-रस्म है । शहर के तमाम नामी-गरामी, 'घनी-घोरी लोग इन्हें बुलाते हैं। श्र ये जाते हैं । सभी तो उनके अपने आदमी हैं। कौन है जिनके यहाँ वह नहीं जाते १ मगर कमाई ! वही ढाक के तीन पात । कमी तीन सौ घर में देते हैं. कमी साढ़ें तीन सौ । श्रौर समझते हैं क़िला जीत लिया | बड़ा ताज्जुब होता है उन्हें कि इतने में घर का खर्च नहीं चलता । कहते हैं तीन दही तो उ्ादमी हैं । मगर ज़रा वक़्त को भी तो देखिये । किस मुश्किल से मैं घर का खच॑ चलाती हूँ मेरा दिल जानता है । खाने- पहनने का, साज-सिंगार का शौक किसके दिल में नहीं होता मगर सुसकसे कसम ले लो जो मैं एक कौड़ी झ्पने किसी शौक पर खर्च करती दोर्ें । सारी उमड़ों को एक सिरे से मैंने दफ़ना दिया है। न सुकके गहने का शौक्क है न कपड़े का न कहीं डे




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