सांख्यतत्वसुवोधिनी सटीक | Sankhyatatvasuvodhini Satik

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Sankhyatatvasuvodhini Satik by कृष्णाचार्य - Krishnachary

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सांस्यतचखयुगेधिनी स०। १३ ये प्रमेयकी सिद्धि प्रसाएके अधीन है ॥ इस यास्ते प्रमाणो का निरूपल भी करना चाहिये ३ ॥ मूठ-दृष्मचमानमाप्तव चने सर्वप्रमाणसिद्धत्वात। त्रिषिधंप्रमाणपिष्टैप्रमेयसिद्धि/प्रमाणाद्धिश ॥ अन्वय पदाथ दृष्टं = परत्यक्षप्रमाण अनुमानं = अनुमान प्रमाण आप्तयचरनं = शब्दघ्रमाण च = चपुनःइनतीनोत्रसाणा करकी स्वेष्रमाणएसिद्धव्वात = सवेषरमाणो की सिद्धि होने से त्रिविधं = तीन प्रकारका प्रमाणं = प्रमाण जो है इं = स्वीकार है प्रमेयसिद्धिः = विषय की जो सिद्धि भमाणात्‌ = प्रमाएसेही हीती है भावाथ प्रत्यक्ष अनुमान उपमान ये तीनदीं प्रमाण है तीनां मेँसेप्र थम प्रत्यक्ष कोटी दिखते रै क्योकि सव प्रमाणो में प्रत्यक्षी ज्येष्ठ है श्रोत्र ग्‌ चक्षुः जिद्वा घ्राण ये पांच ज्ञानेद्दिय हैं और शब्द स्पशं रूप रस गन्धये पांच ज्ञानिन्द्ियोंकि विपय हैं शब्दको श्रोत्र ग्रहण करता है अथोत्‌ भत्र इद्धिय करके शब्दका प्रत्यक्ष हाताहि ओर तगिद्ियकरके स्पशफा चश्ुकरक रूपका जिहाकरके रसका प्राण करके गन्धका प्रत्यक्ष होता हे इन पांच ज्ञानेद्धियों




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