आध्यात्मिकी | Aadhyatmikee
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झात्मा ॥ ~
रथात् चेष्टा, इन्द्रिय श्रैौर अथे इने प्रश्रय को शरीर
कंपे ई ¦ चेष्टा सै चलना ध्रादि सारे काय्यै कलाप; इन्द्रिय सेः
पच्चन्ञनेन्द्रिय; रथै से ज्ञानेन्दिय द्वारा पदार्थो के संयोग-वियोग
का ज्ञान श्रौर तज्ननित सुख-दुःखादि समभने चाहिए । जैसे
सृत्तिका से घर वनता है वैसे ही प्रथ्वी, जलल, तेज, बायु,
झाकाश, इन पाँच तत्वों के मेल से शरीर वनता ₹ै। यदह
नियम है कि जो जिस वस्तु से बनता है उसका गुण उसमें
न्यूनाधिक भाव मे अवश्य रहता है । यदि शरीर को सचेतन
श्रौर सज्ञान मानते ह ता इन पाँच पदार्थो मी तरत्
मानना पड़ता है, क्योकि यह नहीं हो सकता कि कायै मेनो
वस्तु देख पड़ बह कारण में न पाई जाय ।
परन्तु पृथ्वी, जल, तेज, वायु, शरीर श्राकाश क्ती क्या
कभी किसी ने सचेतन श्रौर सज्ञान देखा है ? कभी नहीं ।
झतएव चेतनत्व श्रौर ज्ञानात्मकत्व शरीर का नद्दीं, किन्तु अन्य
किसी वस्तु का धर्म है श्ौीर जिसका बद्द धर्म दै उसी को
आत्मा कहते हैं । यदि शरीर का धर्म होता ता जब तक उसका
लोप न हो जाता तत्र तक तद्धरस्म का भी ललोप न होना चाहिए
था; क्येंकि धर्म्मी घ्लौर धर्म्म॑ का यही खभाव है। परन्तु
मरणानन्तर शरीर पू्ववत्त बना रहने पर भी ज्ञान का अभाव
‰ कारणपू्धेकः काथ्यैयुणो दः अध्याय २, श्राद्धिक १, सूत्र
२४--्र्थात् जे गुण कारण में होता है वहीं काय में भी पाया
ज्ञाता है ।
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