प्राचीन पंडित और कवि | Prachin Pandit Aur Kavi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सवभूति १६
पदनेचाले घ्वालीपुलाक-न्याय से मूल ओर अनुवाद का अंतर
समम; जायेंगे--
अपनी ख्ी लर॑गिका कै घोसे माधव क्ा आलिगन
फरवे, अनंतर उसे पहचान, जब उससे भालती दृट गई
नथ साधव फद्दता है--
प्रकीझृतस्यलि निषिक्क दवापपीट्य
निर्मुग्नपीनकुचकुदमलयाउनया में 1
प्रपू रदारदसिवल्द्मचन्ट्रफात-
निष्यद्शयतमसशणालदिमादियर्म ॥
माया -अटूते पोननप्रयोधरकपी सुदलों को धारणा
दारनेयाती इस मालती मे, कपू'र हार, दरियेंदन, धंडकात-
गसंणि शेप्रण ( सियार ), सुणाल और द्विम भादि शीतल
पदायों को हथीमूत परपे, उरूए पक निचोड़, मेरी तथा पर
हों रख फा लेप सा सगा दिया। इसका अनु॒धार खुनिएू-
जउु तुपर संदन रस सोरो,
दिएत धग मूनात नियोरीद
डमहे छर (| ) मो दिए छुपापति,
शा वषूर ता प्रोषि सगाति।
शत के प्रपूरि, हरियंदए, सुखात और हित एऐो ऐपर
होठ, पद्धकात अंत आपस वो शाद दिया ! मूता मैं एव दी
दिया है; यह मो मृहकालिय है। झपुपाद में हिश्दाति,
एुपापति झट सगायति होंगे दियाएँ है शौर होगों परेमान
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