प्राचीन पंडित और कवि | Prachin Pandit Aur Kavi

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Prachin Pandit Aur Kavi by महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahaveer Prasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सवभूति १६ पदनेचाले घ्वालीपुलाक-न्याय से मूल ओर अनुवाद का अंतर समम; जायेंगे-- अपनी ख्ी लर॑गिका कै घोसे माधव क्ा आलिगन फरवे, अनंतर उसे पहचान, जब उससे भालती दृट गई नथ साधव फद्दता है-- प्रकीझृतस्यलि निषिक्क दवापपीट्य निर्मुग्नपीनकुचकुदमलयाउनया में 1 प्रपू रदारदसिवल्द्मचन्ट्रफात- निष्यद्शयतमसशणालदिमादियर्म ॥ माया -अटूते पोननप्रयोधरकपी सुदलों को धारणा दारनेयाती इस मालती मे, कपू'र हार, दरियेंदन, धंडकात- गसंणि शेप्रण ( सियार ), सुणाल और द्विम भादि शीतल पदायों को हथीमूत परपे, उरूए पक निचोड़, मेरी तथा पर हों रख फा लेप सा सगा दिया। इसका अनु॒धार खुनिएू- जउु तुपर संदन रस सोरो, दिएत धग मूनात नियोरीद डमहे छर (| ) मो दिए छुपापति, शा वषूर ता प्रोषि सगाति। शत के प्रपूरि, हरियंदए, सुखात और हित एऐो ऐपर होठ, पद्धकात अंत आपस वो शाद दिया ! मूता मैं एव दी दिया है; यह मो मृहकालिय है। झपुपाद में हिश्दाति, एुपापति झट सगायति होंगे दियाएँ है शौर होगों परेमान




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