ईश्वरकी सत्ता और महत्ता (कौन क्या कहते है ) | Ishwar Ki Satta Aur Mehtta (Kaun Kya Kehte Hai )

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Ishwar Ki Satta Aur Mehtta (Kaun Kya Kehte Hai ) by महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahaveer Prasad Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१४ ईभ्वरक्पी सत्ता ओर महत्ता संसारका सम्राट्‌, वहाँ लगोटी भी नहीं | सामना किस गजबका है ! सिकन्दरमे भी एक ग्रताप था । मगर मस्तकी निगाह तो यह थी--- शाहोको रोब और हसीनोंको हुस्नो-नाज | देता हूँ, जब कि देखें उठाकर नजरकों में ॥ सिकन्दरपर उस मस्तका रोव छा गया । उसने कदा-- महाराज ! कृपा कीजिये | यहॉके लोग हीरेको गुदडीमे छूपेटकर रखते हैं । पश्चिममे जरा-जरा-सी चीजोकी वड़ी कदर की जाती है | मेरे साथ चलो, मै तुझे राज-पाट दूँगा, सम्पत्ति दूँगा, धन दूँगा, द्वीरे-जवाहिरात दूँगा, जो कुछ चाहो सब दूँगा, लेक्रिन मेरे सोथ चलो |? महात्मा हँसे और बोले-'मै हर जगह हूँ, मेरी दश्टिमे कोई जगह नहीं है |? सिकन्दर नहीं समझा | उसने कहा-“अवश्य चलिये |” और वही छालच फिर दिखाया | मस्तने कहा-'मुझे किसी चीजकी परवा नर्ही, मै अपना फेका हुआ थूक चाटनेवाछा नहीं |! सिकन्दरकों क्रोध आ गया और उसने तलवार खींच छठी | इसपर साधु खिलखिलाकर हँसा और बोला--'ऐसा झूठ तो तू कभी नहीं बोला था, मुन्नको काटे कहाँ है वह तलवार |? “बच्चे रेतमे बैठकर रेत अपने पेरोपर डालते हैं | आप ही घर बनाते हैं और आप ही ढाते हैं। रेतका क्या बिगड़ा * जो पहले थी वह अब भी है । प्यारे ! इसी तरह उस साथुकी दशा थी । यह शरीर उसको बाढछूके घरकी तरह है जो लोगोकी कल्पनामे उनकी समझका घर बना था | मैं तो बा हूँ | घर कभी था ही नहीं | अगर तुम या जो कोई इस घरको बिगाड़ता है, वह अपना घर खराब करता है । ০৯ तारे क्‍या रोशनीसे न्‍यारे हैं | सुम हमारे हो हम तुस्दारे हैं ॥




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