ईश्वरकी सत्ता और महत्ता (कौन क्या कहते है ) | Ishwar Ki Satta Aur Mehtta (Kaun Kya Kehte Hai )
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
487
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahaveer Prasad Dwivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ ईभ्वरक्पी सत्ता ओर महत्ता
संसारका सम्राट्, वहाँ लगोटी भी नहीं | सामना किस गजबका है !
सिकन्दरमे भी एक ग्रताप था । मगर मस्तकी निगाह तो यह थी---
शाहोको रोब और हसीनोंको हुस्नो-नाज |
देता हूँ, जब कि देखें उठाकर नजरकों में ॥
सिकन्दरपर उस मस्तका रोव छा गया । उसने कदा-- महाराज !
कृपा कीजिये | यहॉके लोग हीरेको गुदडीमे छूपेटकर रखते हैं ।
पश्चिममे जरा-जरा-सी चीजोकी वड़ी कदर की जाती है | मेरे साथ
चलो, मै तुझे राज-पाट दूँगा, सम्पत्ति दूँगा, धन दूँगा, द्वीरे-जवाहिरात दूँगा,
जो कुछ चाहो सब दूँगा, लेक्रिन मेरे सोथ चलो |? महात्मा हँसे और
बोले-'मै हर जगह हूँ, मेरी दश्टिमे कोई जगह नहीं है |? सिकन्दर
नहीं समझा | उसने कहा-“अवश्य चलिये |” और वही छालच
फिर दिखाया | मस्तने कहा-'मुझे किसी चीजकी परवा नर्ही,
मै अपना फेका हुआ थूक चाटनेवाछा नहीं |! सिकन्दरकों क्रोध
आ गया और उसने तलवार खींच छठी | इसपर साधु खिलखिलाकर
हँसा और बोला--'ऐसा झूठ तो तू कभी नहीं बोला था, मुन्नको
काटे कहाँ है वह तलवार |?
“बच्चे रेतमे बैठकर रेत अपने पेरोपर डालते हैं | आप ही
घर बनाते हैं और आप ही ढाते हैं। रेतका क्या बिगड़ा * जो
पहले थी वह अब भी है । प्यारे ! इसी तरह उस साथुकी दशा
थी । यह शरीर उसको बाढछूके घरकी तरह है जो लोगोकी कल्पनामे
उनकी समझका घर बना था | मैं तो बा हूँ | घर कभी था ही
नहीं | अगर तुम या जो कोई इस घरको बिगाड़ता है, वह अपना
घर खराब करता है । ০৯
तारे क्या रोशनीसे न्यारे हैं | सुम हमारे हो हम तुस्दारे हैं ॥
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