भिक्षु के पत्र | Bhikshu Ke Patra

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Bhikshu Ke Patra by आनन्द कौसल्यायन - Aanand Kausalyaayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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~~~ ~~~ ~-- -- -- ~ (८ ) हरएक से प्रामाणिक हो तो मैं तुम्हें सलाद दूंगा कि तुम भरी राहुल सांसकृयावन जी की उद्धचयां जरर पड़ । मेरा अनुमान है कि तुम उन विद्यार्थियों में से नददीं हो नो बड़े श्रोछे पाव्क होते हैं जो किसी गम्भीर अन्य को---किसी बड़ी पुस्तक को संसादद दो सप्ताद मन लगाकर पढ़ दी नहीं सकते । यदि ऐसी तबीयत हो तो श्वुदधचर्या को हाय मत लगाना, कोई छोटी किताब पड़ना । गर्मी के मारे कलम की स्याद्दी सूख रही है ! पत्र भी शायद लम्बा दोगया । प्रस्तु) तुम्हारा श्रानन्द कौसल्यायन




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