गिरिनार गौरव | Girinaar Gourav

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Girinaar Gourav by कामता प्रसाद जैन - Kamta Prasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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को भी 'वुझ्' कहा, पर 'कटप' शब्द के साथ । आज के ऐतिहासश भी मानव की आदि स्थिति पाषाण युग को ऐसी ही बताते हैं।* इस प्रकार जन ग्रन्थों में मानव की प्रारम्भिक स्थिति का प्रामाणिक वर्णन मिलता, उसकी प्राचं- नता का ही द्योतक है । कृषि विज्ञान के अविष्कर्ता ऋषभ अथवा वृषभ समयानुसार भोगभूमि का अन्त और कमंभूमि का प्रारम्भ हुआ । चोदहू कुलकरों अधवा मनुओं ने मानव को प्रकृति का रहस्य और उससे लाभ उठाने के प्रयोग बताये, क्योंकि इस समय तक लोग कृषि करना और नाज को आग पर पकाकर खाना नहीं जानते थे। अन्तिम मनु नाभिराय अयो- ध्या में रहते थे । उनके पुत्र ऋषभ अथवा वृषभ हुये, जो महा मेघावी और ज्ञाती थे । ऋषभ ने नवीन आविष्कार किये । कृषि विज्ञान और शिल्प विद्या एवं अक्षर ज्ञान आदि बातों का उन्होंने आविष्कार किया । लोगों ने उनसे प्राकृतिक रूप में उगते हुए मीठे नरकुलों को रसभरे गन्ने में और जंगली चावल और गेहू' को अच्छे रूप में उगाने के विज्ञान को सीख लिया उन्होंने भ्रम का पाठ पढ़ा और पसीने की कमाई करना सीखा । किन्तु ऋषभदेव को इतने से ही सन्तोष नहीं हुआ क्योंकि वह॒ जानते थे कि मानव जोवन का उद्द दय मात्र ऐहिक उन्नति कर लेना नहीं है-ऐहि उन्नति का मूलस्रोत भी मानव का अन्तर हैं, जहां पूर्ण ज्ञान, दर्शन और सुख का सोता हिलोर रहा हैं । इसलिए ही ऋषभदेव ने घर बार और राजपाठ का मोह त्याग कर बनवास स्वीकार किया । लोगों को उन्होंने घर गृहस्थो बनाकर रहना सिखाया और फिर उससे अलग होना भी बताया । शाइवत सत्य और विराट अनन्त रूप को मानव घर के छोटे से दायरे में नही पा सकता । जब वह दिशाओं को अपना अम्बर और विदव को अपना भर मानकर विचरेगा तब वह अन्तहंष्टा होकर महान बनकर चमकेगा। ऋषभ ने यही किया, छेछे मास के तप माढ़कर वह बैठ गये । कैलाश के रम्य शिखिर पर चढ़कर उन्होंने सत्य को पाया और उसे दुनियां को बताया इसीलिए ऋषभ पहले तीर्थंकर हुये और उन्होंने जिस धर्म को बताया यह भाज जन धर्म कहलाता है । । ठप बालंगा भाव्णप्पणप्यकनदयाकफयाप: व0८6५101 र/85 0 पट पपटिधा। हिणा। [116 8815, प्चा1 १६ 9८४ 1० ८00: 00... .... .... | 15 0वा1४ भटया फ्राद्ा 9८ (० ८-घााधा1छ€ पा €1ठाएटा। 0 पा ध, ५8. 96 9८20 (0 8680 शा [रपट 02 8 9६०26 ५6 फा05( उप्र ०180 कप 81 01 11 ८89.” उाशपाई पद 20200 वह डाणाए 0 ता - 1952 (0.14-15, नया




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