हिन्दी - रचना और अपठित | Hindi Rachana Aur Apathit   

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Hindi Rachana Aur Apathit    by जयनाथ नलिन - Jaynath Nalin

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ५ ) नेली मोषा क पर्चात्‌ शेली करो वारी श्राती है 1 भाषा पर पृण अधिक्रार हो जाने पर्‌ लेख फी श्नपनी व्रिशोष शली बन जाती है । प्रत्ये व्यक्ति का श्रपना अलग ढंग हैं, जिस के द्वारा वह द्मे भावों को विशेष प्रकार से प्रकट करता है । फ्रोई व्यक्ति पहुत गम्भीर भाषा का प्रयोग करता है । वाक्य बहुत लम्बे-लम्बे लिखता है, संस्कृत शब्दावली ही उस की भाषा मे विशेष पाई जाती है, दात को बढा-चढा कर कहते की उस की प्रकृति है; तो कोई लेव श्रपने लेख मे चलती हुई भाषा का प्रयोग कर्ता है; चाक्य छोटे-छोटे लिखता रौर श्रपनी बात सक्तिप्र में वह डालता है । किसी की भाषा बड़ी कोमल, सरस, सुकुमार ओर भोली- माली होत है, तो किसी की आओजपूणण॑ पोरुषयुक्त और प्रभावशाली । कोई भाषा का सौंद सादगी में सममता है, तो काई श्रलेकारों का प्रयोग अपनी भाषा मे दहुत करता है। किसी की भाषा में पहाढ़ी मरने का वेग होता है, तो किसी की भाषा में समतत मैदान में बहने वाली सरिता का शान्त प्रवाद । यही सब. शंल्ली के नाम से पुकारा जाता है । किसी भी लेखक्र की रचना पढ़ते हुए हमें इन बातों पर भी ध्यान देना श्त्यन्त ावश्यक है । , कोड भी कहानी, निवंध, लेख श्रादि पढ़ते समय हमें लेखक की शेली को समने का प्रयत्न भी श्रवश्य करना चाहिए । सोलीकार तथा लेखक प्रत्येक लेखक का श्रपने माव प्रकट करने छा दंग अलग होता है ( जो भी व्यक्ति पढ़ा-लिखा है, ददद किसी न किसी प्रकार 'झपने र 97 उस




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