मेरे पिता संस्मरण | Mere Pita Sansmaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
330
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सेरे पिता : सस्नरण ७
आदि कई बड़े दाहरो मे पुलिस कोतवाल के पद पर रह चुके
थे । वे नौकरी ते रिटायर्ड होकर अपने गांव में आकर रहने
लगे थे । दहां उन्होंने हनेली, बैठक, सत्दिर, आदि बनवा कर
तलवन को अच्छा कस्वा बनाने मे काफी हिस्सा लिया । उनके
साथ हौ हमारे तीनों ताया जी भी तलवन मेँ ही रहने लगे
ये ! सद के रहने के अलग-अलग मकान थे, और निर्वाह के
लिए जसीनें थीं ।
दादा जी की मृत्यु के पश्चात् भाइयों का बंटवारा हो गया ।
पिता जी सब में अधिक पदे लिखे थे, श्रौर घर-र मे धर्मात्मा
समभे जाते थे, इस कारण बेंटदारे का काम मुख्यसरूप से
उन्हीं के सुपुरदं किया गया । पिता जी की तबियत के व्यक्तियों
की यह विज्ञेषता होती है कि वंँटवारे जैसे मामलों में स्वयं
हानि उठाने को स्याय का कार्य समकते हैं । इस बंटवारे में
थी ऐसा ही हुआ । चारों भादयों मे मकान, जमीन ओर नकद
का जो बेँटवारा हुआ, उसमें पिता जी ने सब से घटिया
हिस्सा लिया । अन्य भाइयों को श्रलग-श्रलग मकान मिले, पर
हमें बड़ी हवेली का एक हिस्सा सिला था । पिता जी कहा
करते थे कि मैने तो जालन्घर में मकान बना लिया है, मुभे
तलवन में वड़े मकान की श्रावश्यकता भी क्या है ?
तलवन में तीन तरह बी आवादी थी । जिस भाग में
हमारे मकान थे, उसे कस्दे का समृद्ध भाग कहा जा सकता
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