मेरी आत्मकहानी | Meri Aatmakahani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
297
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ मेरी श्रात्मकटहानी
लखनऊ से उनके साथ हो गया । जब हम लोग अस्रतसर पहुँचे तो
सटेशनवालों ने सवाव की तौल की बात उठाई । मेने कहा करि सब
माल तोल लो ओर जो महसूल हो, ले लो । मेरे चाचा साहब इस
चिंता में व्यग्र हुए कि हमारा माल अलग कर दिया जाय । इस पर
में बिगड़ गया तब वे शांत हुए ।
लाला हरजीमल की अवस्था में ऐसा आशातीत परिवत्तेन देखकर
मेरे ज्येष्ठ पितामह लाला नानकचंद अपनी स्त्री तथा दोनों भतीजों को
साथ लेकर काशी चले आए । मेरे पिता न कपड़े की छोटी-सी
दुकान खोली । इसमें उन्हें हरजीमल हरदृत्तराय की कोठी से माल
मिल जाता था । धीरे धीरे उन्होंने अपने व्यवसाय में अच्छी उन्नति
की । क्रमश: व्यापार बढ़ने लगा और धन भी देख पड़ने लगा ।
उनकी दुकान पुराने चौक में थी । मेरे पिता का विवाह लाला प्रभु-
दयाल को ज्या कन्या देवकी देवी से हुआ था। मेरे नाना
गुजराँवाला के रहनेवाले एक बड़े जौहरी थे । उनकी दुकान अम्रतसर
में थी । एसा प्रसिद्ध है कि वे एक लाख रुपये की ढेरी लगाकर और
उस पर गुड़गुड़ी रखकर तमाकू पीते थे। उन्हें बड़ा दंभ था ।
बिराद्री में जब कहीं गमी हो जाती तब वे नहीं जाते थे । केवल
अपनी दुकान की ताली भेज देते थे । जाति के लोग उनसे असंतुष्ट
थे । दैवदुविपाक से उनके लड़के का ददात हो गया । मुदा उठाने
के लिय बिरादरी का के नहीं आया । तब उन्हे जाकर लोगों के पैर
पड़ना पड़ा ओर क्षमा माँगनी पड़ी । पुत्र-शोक में वे अपनी खी,
छोटे लड़के ओर तीनों कन्याओं के लेकर काशी चले आए ओर यहाँ
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