मेरी आत्मकहानी | Meri Aatmakahani

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Meri Aatmakahani by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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८ मेरी श्रात्मकटहानी लखनऊ से उनके साथ हो गया । जब हम लोग अस्रतसर पहुँचे तो सटेशनवालों ने सवाव की तौल की बात उठाई । मेने कहा करि सब माल तोल लो ओर जो महसूल हो, ले लो । मेरे चाचा साहब इस चिंता में व्यग्र हुए कि हमारा माल अलग कर दिया जाय । इस पर में बिगड़ गया तब वे शांत हुए । लाला हरजीमल की अवस्था में ऐसा आशातीत परिवत्तेन देखकर मेरे ज्येष्ठ पितामह लाला नानकचंद अपनी स्त्री तथा दोनों भतीजों को साथ लेकर काशी चले आए । मेरे पिता न कपड़े की छोटी-सी दुकान खोली । इसमें उन्हें हरजीमल हरदृत्तराय की कोठी से माल मिल जाता था । धीरे धीरे उन्होंने अपने व्यवसाय में अच्छी उन्नति की । क्रमश: व्यापार बढ़ने लगा और धन भी देख पड़ने लगा । उनकी दुकान पुराने चौक में थी । मेरे पिता का विवाह लाला प्रभु- दयाल को ज्या कन्या देवकी देवी से हुआ था। मेरे नाना गुजराँवाला के रहनेवाले एक बड़े जौहरी थे । उनकी दुकान अम्रतसर में थी । एसा प्रसिद्ध है कि वे एक लाख रुपये की ढेरी लगाकर और उस पर गुड़गुड़ी रखकर तमाकू पीते थे। उन्हें बड़ा दंभ था । बिराद्री में जब कहीं गमी हो जाती तब वे नहीं जाते थे । केवल अपनी दुकान की ताली भेज देते थे । जाति के लोग उनसे असंतुष्ट थे । दैवदुविपाक से उनके लड़के का ददात हो गया । मुदा उठाने के लिय बिरादरी का के नहीं आया । तब उन्हे जाकर लोगों के पैर पड़ना पड़ा ओर क्षमा माँगनी पड़ी । पुत्र-शोक में वे अपनी खी, छोटे लड़के ओर तीनों कन्याओं के लेकर काशी चले आए ओर यहाँ




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