वाइरस एवं कैंसर की कहानी | Vairas Evm Kainsar Ki Kahani

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Vairas Evm Kainsar Ki Kahani by कृष्णानंद - Krishnanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोशिकाश्रों की प्रतिरक्षा ११ मालुम किया कि एेन्टीबाडी शरीरके ्रन्य प्रोटीनों से भिन्न नहीं हैं। उनका भी निरन्तर निर्माण श्रौर विघटन होता रहता है । दूसरे दाब्दों में सूल संक्रमण के समय ऐन्टीबाडी उत्पन्न करने के लिए जो प्रक्रिया अस्तित्व में श्राती है, वह कभी वर्षों तक श्रौर कभी जीवन-पर्य॑न्त अपना काम करती रहती है । तो हमें यह तो मालूम है कि प्रक्रिया काम करती रहती है परन्तु वह प्रक्रिया क्या है, यह हमें नहीं मालूम है | | यद्यपि बचाव विद्या विषयक भ्रसमाधेय प्रनों पर मैंने बहुत जोर दिया है परन्तु वास्तव में इस क्षेत्र की व्यावहारिकं उपलब्धियाँ श्रनेक हैं । एल्टीजन-एेन्टी- बाडी प्रतिक्रिया के श्रध्ययन से प्राप्त ये फल हैं--अ्रतेक प्रकार की बचाव- क्रियाए, मानव-रक्त का विभिन्न वर्गो मे वर्गीकरण, ताकि एक श्रादमी का रक्त दूसरे झ्रादमी को सुरक्षित रूप में दिया जा सके, रक्त की कुछ बूँदों के परीक्षण द्वारा बीमारियों, जैसे सिफिलिस का निदान, ऐलजियों की चिकित्सा । परन्तु इन उपलब्धियों का वर्णन श्रौरों पर छोड़ा जा सकता है । हम में से कुछ को ज्ञात की शपेक्षा अज्ञात कहीं अधिक श्राकषंक है । बेक्टीरियायी युद्ध शब्द का पिछले दिनों काफी प्रयोग किया गया ह । निङ्चय ही इससे यह्‌ अ्भिप्राय है कि युद्ध में शस्त्रों के रूप में बैवटीरिया या उनके विषों का प्रयोग होगा 1 परन्तु पृथ्वी पर मनुष्य श्रौर उसके क्षुद्र युद्धों के अवतीरां होने से लाखों वर्ष पूवं से बैक्टीरिया षडे पैमाने पर युद्ध करते रहे हैं । बड़े पैमाने पर हृत्या की कला में मनुष्य झ्रभी बिल्कुल नवसिखुश्ना है । श्रगर एक परमाणु बम से हमने एक लाख श्रादमी मार दिये तो कौनसी बड़ी वात की? 'हाइडो- जन बम' कहने में जितना समय लगता है उससे कम समय में मुट्ठी भर मिट्टी में करोड़ों बैक्टीरिया मरते रहते हैं रौर इसके लिये जो शस्त्र इस्तेमाल किये जाते हैं वे हमारे दास्त्रों से कम कौशलपुर्ण नहीं होते । उस मुट्ठी भर मिट्टी में उससे कहीं ग्रधिक.जीवारा हैं जितने पृथ्वी पर मनुष्य हैं। उस मुट्वीभर संसार में जीवन बहुत विकट है । वहां भोजन की कमी है । जीवन के लिये हो रहा युद्ध बहुत भीषण है । कुछ जीवाणु इस युद्ध में श्रपने प्रतियोगियों के विरुद्ध विशेष रूप से सुसज्जित होते हैं । वे श्रपने चारों श्रोर एक विषेला घोल फंलाते हैं। विषेले भ्ररुओं से युक्त क्षेत्र में कोई दूसरा जीवाणु प्रवेश नहीं कर. सकता श्रौर न वहाँ जी सकता है। केवल विषैले शस्त्र वाले जीवाणु ही इस क्षेत्र में फल-फूल सकते हैं । यह्‌ कहना श्रनावर्यक है कि सवं प्रथम पास्चर ने इस सूक्ष्म रासायनिक युद्ध का निरीक्षण किया रन्ध्रं क्स बेसिली के एक समूह का, जिसका वर्णन पीछे किया जा चुका है, बढ़ना रुक गया । पास्वर ने इस सामूहिक संह्ार का उत्तर- दायित्व उन जीवाणुश्रों पर रखा जो वायु से बैक्टीरिया वाले घोल में अागये ये,




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