ब्रजभाषा के कृष्णभक्ति - काव्य में अभिव्यंजना - शिल्प | Brajbhasha Ke Krishnabhakti-kabya Me Abhivyanjana-shilp
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
61 MB
कुल पष्ठ :
489
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. सावित्री सिन्हा - Dr. savitri sinha
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ ब्रजभावा के कृष्ए-पक्ति काव्य मे श्रमिव्यंजना-शित्प
होकर मूतं रूप धारण करती हँ । निम्नलिखित रूपरेवा से विषयवस्तु तथा भ्रमिव्यंजना में
मेद की स्थापना पूणं रूप से स्पष्ट हो जायेगी--
कलात्मक प्रक्रिया
ग्रमूतं स्थिति वस्तुपरक पक्ष
व्यक्तिपरक पक्ष जागरूक प्रयोग
ऐन्द्रिय अवचुबोध प्राथमिक
द्वारा वस्तुग्रहण कल्पना
प्रतीकात्मक श्मूतं
चित्रों का निर्माण
वमन
|
भौतिक उपादानं के माध्यम
से व्यक्तीकरणा (बौद्धिक कल्पना
(ग्रभिग्यंजना) चेतन प्रक्रिया)
| |
साधन रूप साध्य रूप
इस प्रकार सौन्दये-शास्त्र के भ्रन्तगंत काव्य-सम्वन्धी अभिव्यंजना को बौद्धिक प्रक्रिया
के रूप में ही ग्रहण किया गया है । भौतिक उपादानों के जिस संगठन द्वारा कवि श्रथवा
कलाकार अपने अभिप्रेत की अभिव्यक्ति करता है वहीं अभिव्यंजना है । इन उपादानों में
अ्रन्तःस्थ व्यंजक शक्तियों को संकलित तथा संगठित करके कवि श्रपनी भावनाश्रों को श्राबद्ध
करता है । इस संगठन द्वारा श्राविर्भूत रूपात्मक विन्यास ही कलाक़ृति का श्रायाम है श्र
यही झ्रभिव्यंजना है । काव्य में विषय-वस्तु श्रौर उसके व्यंजक उपादानों का विन्यास इतना
संदिलिष्ट होता हैं कि कुछ दार्शनिकों ने उसे पुर्ण रूप से अविभाज्य श्रौर श्रखण्ड सिद्ध किया है ।
इस क्षेत्र में सर्वे प्रमुख नाम इटली के दाशंनिक बेनेदेतो क्रोचे का है । काव्य विभाज्य है
अथवा झविभाज्य इस प्रदन को लेकर हिन्दी-जगत् में काफी वाद-विवाद हुमा है पर हिन्दी
के प्रमुख झ्ाचायं श्रालोचकों ने इस प्रइन पर विचार किया है) कान्य में भ्रभिव्यंजना-पक्च
का स्वतन्त्र भ्रौर पृथक् श्रस्तित्व होता है यह बात पुर रूप से मान लेने के पूर्व क्रोचे के
श्रभिव्यंजनावादः तथा उससे सम्बद्ध मतो का विवेचन समीचीन होगा ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...