हिन्दी काव्य पर आंग्ल प्रभाव | Hindi Kavya Par Angl Prabhav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
31 MB
कुल पष्ठ :
298
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६
विश्वविद्यालय द्वारा ड्री ० फिल० उपाधि के लियेश्वीकृत किया गया । इस प्रकार
प्रभी तक हिंदी काव्य में श्रांग्ल प्रभाव के विषय पर कोई विवेचनात्सक निबंध
नहीं लिखा गया | प्रस्तुत निबंध में इसी श्रमाव की पूर्ति करने का प्रयत्न किया
गया हैं |
हिन्दी काव्य पर अंग्रेजी प्रभाव के श्रध्ययन का कार्य श्रारंभ करने के
पूर्व हमारे लिये यह उचित श्रौर श्रावश्यक य्रतीत होता है कि हम भारत में अंग्रेजी
संस्कृति के श्रान से पहले के हिन्दी काव्य श्रौर उसकी प्रमुख प्रबृत्तियों पर
विचार करं |
(ब)
झांग्ल प्रभाव से पहले का हिन्दी काव्य
(१) पेतिहासिक पृष्ठभूमि
हिन्दी प्रदेश में ब्रिटिश राज्य की स्थापना का समय लगभग इसा की
१९वीं शताब्दी का सध्यकाल कहा जा सकता है । विद्रानां ने इस ब्रिटिश
राज्य स्थापना से पूर्व लगभग दो सौ वर्ष के समय को 'रीतिकाल' रे की संज्ञा
प्रदान की है | श्रतः रीतिकाल के झन्तगत इंसा की १७वीं शती के मध्य काल
लेकर १४वीं शती के मध्यकाल तक की पूरी दो शर्ताब्दियाँ श्रा जाती हैं । रीति-
कालीन काव्य कै श्रध्ययन् के लिए यह श्रावश्यक हैं कि हम इस समय की ऐति-
हासिक पृष्ठभूमि पर एक दृष्टि डाले । श्रतएव सबसे पहिले यहाँ हम इस 'समय
की राजनीतिक, सामाजिक श्रौर, सांस्कृतिक परिस्थितियों पर विचार करेगे |.
कगार
रयं पर ध्यान रहे कि इस “रीति” शब्द के प्रयोग का कोइ भी संबंध
संस्कृत समीक्षा के रौति सम्प्रदाय से नहीं है। संस्कृत के झ्राचार्यों ने “अलंकार,
“रीतिः, “रस, “ध्वनि”, और “वक्रोक्कि, काव्य के इन पाँच तत्वों को कार्व्य की
अन्तरात्मा के रूप में उपस्थित किय। था । हिन्दी में 'रोति” शब्द का प्रयोग भिन्न
थे में हुआ । हिन्दी में इस काल में कोई भी ग्रन्थ जिनमें काव्य सिद्धांतों का विवे-
चन होता था. रीति अ्रन्थ” कहलाता था, और बहद'काव्य जो इन सिद्धांतों के झननु-
सार लिखा जाता था “रीति काव्य” की संज्ञा प्राप्त करता था । इस प्रकार काव्य में
रीति? शब्द का प्रयोग एक विशेष शास्त्रीय ढंग पर लिखे काव्य के लिए होता था
जिसमे क।व्य के कुछ नियमों और परम्पराओओों पर विषेष ध्यान रखा जाता था । यही
कारण है कि कुछ आलोचक “रीतिः शब्द् कै प्रयोग को इस युग क लिए उपयुक्त
नहीं मानते । डा० रमाशंकर शुक रसालः ने रीति-युग की काव्य-रचना में कला-
त्मकता कौ प्रवृत्ति देखकर उसे कलाकाल कहा है ।
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