छायावादोत्तर हिन्दी कविता का दार्शनिक और वैचारिक अनुशीलन | Chhayavadottar Hindi Kavita Ka Darshnik Aur Vaicharik Anusheelan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
254
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री मुकुट धर पाण्डेय का ध्यान छायावाद का नामकरण करने मे इन
चार तत्वो पर केन्द्रित था-घुघलापन, अन्तर्मुखी विचार सरणि, अमिधानिक सीमा
का उल्लघन नई शैली |.“
आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी, नन्द दुलारे बाजपेयी एव राम चन्द्र शुक्ल
छायावाद को रहस्यवाद का पर्याय तो नहीं समझते पर उसे आध्यात्मिकता से
जोडकर देखते जरूर है। महाबीर प्रसाद द्विवेदी छायावाद को अन्योक्ति पद्यति
समझते थे। “शायद उनका मतलब है कि किसी कविता के भावो की छाया यदि
कही अन्यत्र जाकर पडे तो उसे छायावादी कविता कहना चाहिए।”
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने छायावाद शब्द को उन्ही अर्थों मे लिया है।
एक तो रहस्यवाद के अर्थ मे जहा उसका सम्बन्ध कथावस्तु से होता है।
दूसरा प्रयोग काव्य शैली या पद्धति विशेष के व्यापक अर्थ मे। “छायावाद का
सामान्यत अर्थ हुआ प्रस्तुत के स्थान पर उसकी व्यजना करने वाली छाया के
रूप मे अआप्रस्तुत का कथन |” लगता है अज्ञात के प्रति जिज्ञासा के भाव को
देखकर दही शुक्ल जी ने यह परिभाषा दी जिससे छायावाद की अन्य विशेषताये
उसकी परिसीमा मे नहीं आ पाती है।
आगे चलकर रहस्यवाद और छायावाद मे भेद किया जाने लगा। शुक्ल
जी ने छायावाद ओर स्वच्छन्दता बाद मे भी भेद किया। पर कुछ लोग
(०) भ्रमवश शुक्ल जी द्वारा गढे हुए स्वच्छन्दतावाद को भी
छायावाद का पर्याय मानने लगे! यहा समञ्च लेना चाहिए कि छायावाद न तो
रहस्यवाद है ओर न दही स्वच्छन्दता बाद बल्कि उसमे दोनो के कतिपय गुण धर्म
शामिल है। जहा तक रहस्यवाद छायावाद, ओर स्वच्छन्दतावाद शब्दों के शब्दार्थ
ओर लोक प्रचलित भाव का सम्बन्ध है। निश्चय ही इन तीनो मे थोडा-थोडा
अन्तर हे। रहस्यवाद अज्ञात की जिज्ञासा है। तो छायावाद चित्रण की सूक्ष्मता
ओर स्वच्छन्दतावाद प्राचीन रूढियो से मुक्ति की आकाक्षा। शुक्ल जी ने
छायावाद को नकली साबित करने के लिए जो भगीरथ प्रयत्न किया था, उसको
विशेष महत्व न देकर यह जरूर स्वीकार कर लेना चाहिए कि बागला मे इस
शैली की जो रचनायें होती थी उनका एक लक्षण छायावादिता भी था। अर्थात्
बागला मे छायावादिता शब्द अवश्य प्रचलित था। छायावाद चाहे न रहा तो।
ङस प्रकार पाण्डेय जी तथा शुक्ल जी के कथन मे कोई अन्तर नही हे।
मकभियिनो लीन
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