अनित्य - भावना | Anitya Bhawna
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
49
श्रेणी :
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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प् प्रकीरंक पुरस्तकमाला
सवं नश्वरमेव पस्तु सवने मत्वा महत्या धिया
निधुताऽखिल-दुःखसन्ततिरहो धमेः सदा सेव्यताम् ॥६॥
दुनिवार-मावी-वश अपना प्रियज्ञन मरण करे जो ,
अन्धकारमे नत्य करे वह उसपर शोक करे जो ।
सन्मतिसरे सवं वस्तु जगतमे नाशवन्त लख भाई !
सव दुख-सतति-नाशक सेवो धमं सदा मन लाई ॥ ६ ॥
भावार्थं ~ अलंध्यशद्धि भवितव्यताके वश होकर झपने किसी
प्रियजनके मरने पर जो मनुष्य शोक करता है उसका वह शौक करना
अन्धकारमे चृत्य करनेके समान व्यर्थ है--उससे किसीको भी कुछ
लाम अथवा आनन्दकी प्राप्ति नहीं हो सकती । अत' शोककों छोड़कर,.
विवेकको अपनाना चाहिये और उसके द्वारा यह मानकर कि जगतके सभी
पदाथं पयोयदृ्टिपे नाशशवान् हैं--कोई भी अपनी एक श्रवस्थामे सदां
स्थिर रहनेवाला नहीं है--उस धर्मा सादर सेवन करना चाहिये जो
सारी दु ख-परम्पराका विनाशक हे ।
(शद्ल विक्रीडित)
पूर्वोपार्जित-कमणा बिलिखितं यस्याऽवसानं यदा
तञ्ञायेत तदैव तस्य भविमो ज्ञात्वा तदेतद् म्। `
शोकं यश्च मूते प्रियेऽपि सुखदं धमे इरुष्वाऽऽद्रात्
कः क, ७ कः
सर्पे द्रयुपागते किमिति भोस्तद्ध्टिराऽऽहन्यते ॥१०॥।
पूवे-कमेने जिस प्राणीका अन्त लिखा जब भाई !
उसका शन्त तभी होता है यह निश्वय उर लाई ।
छोड़ शोक मरनेपर प्रियके, सादर धमे करीजे ;
दुर गया ज्ञं निकल खरप तब लीक पीट क्या कीजे ? ॥१०॥
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