आधे रास्ते | Aadhe Raste

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोर्ट दिल्ली में ही दोगा । श्रौर स्वनाम-धन्य बादशाह श्रालम की शझ्रात्मा अवश्य पथ-प्रदशन करेगी । न इस समय के भड़ॉँच का श्राभास दिये बिना टीले के श्राद्य मुंशी किसनदास का परिव्वय नहीं दिया जा सकता । श्रौर इस सृन्रघार के परिचय के बिना यह नाटक शुरू भी केसे दो सकता है ? केशरदास के कन्यादान में मुन्शीगिरी कोने के बाद भढ़ौंच के स्वामी सामान्य स्थिति के थे। सबसे पहले गाज़ी बादशाह उसके नीचे शुबे अहमदाबाद उसके नीचे नवाब भड़ौंच उसके नीचे भड़ौंच परगने के पुश्तैनी श्रमलदार --देसाई श्रोर मजूमदार? । उसके बाद पूना से हर साल मराठी फौज शझ्राती श्रौर चौथ उगाती पेशवा के प्रतिनिधि भास्करराव वहाँ रहकर शासन भी करते । बड़ोदे से गायकवाड़ कभी पेशवा की श्रोर से श्रौर कभी स्वयं श्राकर झ्रपना रोब जमा जाते । झ्ौर इन सबके बीच में स्वनाम-धन्य इस्ट इंडिया कम्पनी व्यापार करने के पवित्र विचार से बम्बई की शझ्रदालत में बेठी-बेठी खुराफात करती रहती । जनवरी सन्‌ १७६१ में श्रददमदशाह श्रब्दाली ने पानीपत के सैदान में मराठों को खूब छुकाया । बालाजी बाजीराव पेशवा दृटी भ्रौर वीर थे। इतिहास में ऐसे वीर थोड़े दी मिलते हैं । उनके साम्राज्य के स्वप्त भंग हो गए श्रौर कुछ दिन में उनकी जीवन-लीला भी समाप्त हो गई । उनका छोटा भाई रघुनाथराव--राघोवा--मूखे था । बालाजी का एक पुत्र माधवराव पेशवा बचपन में मर गया दूसरे पुत्र नारायणराव को राघोवा ने मरवा डाला-- स्वनाम-घन्यथ कम्पनी के प्रतिनिधि मोस्टिन के सहयोग से । नारायगराव पेशवा १ देसाई को शझ्राघुनिक कलक्टर तथा मजूमदार को तहसीलदार का प्रतिरूप कहा ला सकता है । श्ठ




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