श्रीवत्स | Shreevats
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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दश्य १] श्रीवत्स
नारद-े इस विचार से सहमत नही । कन्या-रन कहीं स
नी प्राप्न हो, वह् अरदण करने योग्य है । कहा हैः--
खी रलं दुष्छुलादपि।
रीर भीः-
लियो सनान्यथो विया घमः शाच सुमापितम् ।
विविधानि च भिल्पानि समदेयानि सर्वतः ॥
शनि-्े यदी नदीं मानता ।
इंद्र-इस प्रश्न से न आपका संघंध है न मरा । इस विपय में
विष्णुदेव प्रमाण हैं । आपके मानने न मानने से क्या होगा ?
शानि-मेय संवंध तो इस बातसे है कि अज्ञात कुलजा
लक्ष्मी मुकसे पदवी में वड़ी नहीं हो सकती । में उससे बड़ा हूँ ।
लक्ष्मी--विश्व के पालन-पोपणु-कर्त्ता की खत्री के नाते मैं वड़ी
हूँ । मेरी सब लोग पूजा करते हैं । मेरे लिए सब लोग लालायित
“रहते हैं । सेरी कृपा से रंक भी राजा वन जाता है । मुझे प्राप्त
करके लोग गद्गद दयो उठते है, श्रौर तुम्हारी सूरत देखकर . ...
शनि-खौर क्या १ तुम गोरी और मैं काला ! क्या तुम
जानती हो कि तुम्हारे पति विष्णुदेव का कैसा रंग हैः कैसी सूरत
. है? सुनो, उन्दै भौ यही वणं प्रिय है। जिस वशे की महिमा
विष्णुरेव स्वी कार करते हैं, उसकी घुराइ तुम भला क्या कर सकती
हो ? तुम लोगों में पूजी जाने से अपनी वड़ाई समकती हो परंतु मैं
सुम्हें वताये देता हूँ कि मेरी भी लोग बड़ी श्रद्धा से पूजा करते हैं ।
लक्ष्मी-श्रद्धा से नहीं, भय से । प्रेम से किसी की पूजा-
स्तुति करना उसकी महत्ता प्रकट करता है, भय से लघ॒ता । संसार
में पालन-पोषण-कत्ता बड़ा कहा गया है; विनाश-कत्ता नहीं ।
शनि--लक्ष्मी ! कगड़ती क्यों हो ? अभी निर्णय हुआ जाता
श्री० २
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