श्री जैनमत वृक्ष | Shri Jainmat Vriksh
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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No Information available about आचार्य जिनविजय मुनि - Achary Jinvijay Muni
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(९) .
अपने आपकों सबेमें सुख्य ठदशये. यह कंथन श्री -
अगवती सूच: आवश्यक सूच: जाचारादेतकर आ-
दि थथौ है. ` =
प ८. १० )
श्री शीवछनाथ अरिहंत; तिरक ८९, गणधर
ओर, ८९, गच्छ. आद्द्यकादों
अ-जब श्री शीताय दशम अरिदंत हुए. तब ति
नोने फिर जैनघमकी: पति करी; परंठ जंगली ऋषि
बाहमाणोंनें. तिनका उपदेश न माना किंठ भगवाय
शीतलूनाथके विरूद्ध प्ररुपणा करके, वेद धर्म ऐसा ` .
नाम रखके एकमत चलाया. तिसमतकों: बहुत ठोक...
मानने लगे; तब वेद धमं जगत ्रासेद्ध हमा. प
सेहरी शरी धर्मनाथ तीर्थकर भगवाच् तक स्वं जगे
कितनेख कारु जेन धं व्यवच्छेद होता गया, मौर
पेद धमे प्रगट गयी. यहु सागपे-सिरि भर्द्-
चक्रव आयस्य वेयाण विस्ख- उष्यत्ति माहण
ढणत्यमिण कडियं सरुचाण विवहार ॥ ९ ॥ जि
णतित्थेडुच्छिण्णे मिछतते माहणे डिंतेठ पिया अ संज-
. याण प्रज! अष्पाणं कटि मातहिं ॥२५* इनदौनों
माका सदाथ यद्रे. श्री ऋषभदेवके पुत्र भरत
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