कल्याण कारक वैद्यक ग्रन्थ | Kalyana - Karakam Vaidhyak Granth
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
28 MB
कुल पष्ठ :
918
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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4 १ ० बाई रते हैं। उतनी ही उसे विश्रांति समझनी चाहिसे । शरीर
१ होते हुए घातुओंमें- कुछ वैषम्य उत्पन्न होता ही है। वातपित्तकफ के
भ्यापार मे उन उन धातुवोंका व्यय होता ही रहता है । उससे उनमें वैषम्य उत्पन्न
होता है व दोषदव्य का नि्मीण होता है | घातु-दोष सल्निध वास करते हैं । जबतकं
धातुदब्योंका बंढ अधिक रूपसे रहता है तबतक स्वास्थ्य टिकता हैं । दोष दर्योका
न 6१६ वे घातुओंकों दूषित करते हैं व स्त्रासथ्य को बिगाडते हैं । दोष व मलधे
शरीरसंधारकथातु दूपित होते हैं व रोग उत्पन्न होता है । इस प्रकार घातु-दोष
मीमांता है 1 . ः
असाल्येंद्ियार्थसंयोग, प्रज्ञापराध व परिणाम अथवा काठ ये न्रिविष रोग के कारण
होते हैं। [ असात्म्येन्द्रियार्थसंयोगः मज्ञापराधः परिणामश्रेति न्रिविं रोग-
कारणमू ] अंसात्येंद्ियार्थसंयोग से स्पर्दक्तमाव विशेष उत्पन्न होते हैं। स्परीकृतभाव
विेषोंति त्रिधातु व मनपर परिणाम होता है, एवं दोष उपनन होते हैं 1 प्रह्ञाराघका
मनपर प्रथम परिणाम होता है । नेतर शरीरपर होता है । तत्र दोषवैषम्य उत्पन्न होता
ह ¡ काठका मौ दीप्रकार शरीर व मनप परिणाम होकर ^ दोषता होती है । एवं
दधो चय, प्रकोप, प्रर ब स्थानसंश्रय होते हैं। उससे संरभ; सोथ, विद्रपि, तरण,
कोथ होते हैं | दोषोंकी इस प्रकारकी विविध अवस्था रोगोंकें नियमित कारण व दोषदूष्य
संयोग अनियमितकारण और विष, गर; हेंद्रिय-विषारी क्रिमिजंतु इादिक रोगके
निमित्तकारण हैं । + `
आधुनिक वैद्यकशासमें जंतुशाख्रका उदय होनेसे रोगोंकि कारणमें निश्चितपना
आगया दे, इसप्रकार आधुनिक वैधोंका मत है। लंतुकं मिटने मात्रत ही बह उस रोगका
कारण, यह कहा नहीं जासकता । कारण कि कितने ही निरोंगी मनुष्योंके शरीरं जंतुके
होते हुए भी बह रोग नहीं देखाजाता है। जंतु तो फेवल बीजसदश है।
उपै अतुकूठ भूमि मिटनेपर वह बढता है । उसे सेद्रिय, विषारी जतु बनता है व रोग
उत्पन होता है! परंतु अनुकूठभूमि न रहनेपर अर्थात् जंतु करी बृद्धि के ठि अनुकूठ
दारारिक परित्थिति नहीं रहनेपर, ऊसर अूमिपर पढे हुए सश्यबीज के समान जंतु बढ
नहीं सकता है और रोग भी उत्पन्त नहीं कर सकता है। यह अनुकूपरिस्थिति का
अभी ही दोषदुध्शारीर है | कॉखरा व प्लेग सर्रखे भयंकर रोगोंमें भी बहुत धोडे
छोमोंको दी वे रोग ढगते हैं । सबके सव उन रोगो पीडित नकी हीते इतका कारण
ऊपर कहा गथा हैं, अर्थात् जतु तो इतर निमित्तकारण. के समान एक
निमित्तकारण है ।
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