रंग भूमि | Rang Bhumi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
424
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand),रंगभूमि >
कर
निकाली, जो श्वाज दिन-भर की कमाई थी । तब मो पढ़ी की छान से टटोल-
कर एक थैली निराजी, जो उसके जीवन का सर्वस्व थी 1 उसमें पैसों की
पोट्ली बहुत धीरे से रक्खी कि डिसी के कानों भनक भी न पढ़ें । फिर
थंली को छान में दिपाइर बढ पढोस के एक घर से शाग मांग लाया ।
पेढ़ों के नोचे से कु सूखी टनियों जमा कर रकसी थीं, उनसे चूल्हा
जलाया । गों'पढ़ी में दरक्ा-सा श्रस्थिर प्रकाश हुआ 1 कैसी विईवना थी !
कितना नैराश्य-पुर्ण दाद्धिव था ! न दिस्तर; ने बर्तन, न भाडि ।
एक कोने में एक मिट्टी का घड़ा था, जिसकी श्रायु का कु श्नुमान उस
पर जमी हुई वाई से दो सकता था। चून्हे के पास होंडी थी । एक पुराना,
चलनी की भाँति द्िद्रों से भरा हु तवा, एक ष्टोटी-सौ कटौती श्रौर
एक लोटा । बस, यददी उस घर की सारी संपत्ति थी । मानव-लालसाध्ों का
क्रितना संस्लिप्त स्वरूप ! स्रदास ने श्राज जितना नाज पाया था, वह् ज्यो
कर्यो दोडी में डाल दिया । कुछ जौ थे, कुद गेहूँ कुछ मटर, कुछ चने,
थोढ़ी-सी जुश्रार श्रौर् पुद्री-भर चावल 1 ऊपर से थोढ़ा-सा नमक टाल दिया ।
किसकी रसना ने ऐसी खिचढ़ी का मज़ा चक्खा है ? उसमें संतोष की मिठास
थी, जिससे मीठी संसार में कोई वस्तु नदीं । हाँडी को चूरदे पर चढ़ाकर
चढ़ घर से निकला, द्वार पर टट्टी लगाई, 'ौर सदक पर जाकर एक वनिए
की दुकान से थोड़ा-सा श्ारा श्रौर एक पैसे का गुड़ लाया । श्राटे को
कठौती में गँधा, श्रौर तब श्याथ घंटे तक चूल्हे के सामने खिचड़ी का मधुर
श्रासाप सुनता-रदा । उस धते प्रकाश मँ उसक्रा दुबल शरीर श्रौर् उसका
जीरो वघ सनप्य के जीयन-परेम का उपदास कर् रहा शरा!
दोडी मेँ कदं वार उवाल” श्राए, कर वार् श्राग बुफी । वार-वार् चूल्हा
फू कते-फू कते सूरदास की थाँखों से. पानी वहने लगता था । भांखें चाहे.
_ ' देख न सकें, पर टो सकती हैं । यहां तक कि वह “पट्रस'-युक्त ्मवलेदद तैयार
' हुआ । उसने उसे उत्तारकर नीचे ,रक्खा । तव तवा चढ़ाया, श्ौर हाथों से
रोटियाँ चना-बनाकर सेकने लगा । कितना ठीक श्रदाज़ था । रोटियाँ सच
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