विमोचन | Vimochan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
105
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about चक्रवर्ती राजगोपालाचर्या - Chkravarti Rajgopalacharya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)माघव को ज्ञान हुआ । ७
दूसरे दिन भी यही बातें होतीं । “ भाई, आभो चर '' कहु कर
सोमू दरवाज़ पर आ खड़ा होता और माधव को बुढाता ।
माघो अपना काम बन्दकर अपने दोस्तों के साथ हो लेता । रामू
अपनी बेटी बही को बुखाता । बली डिब्बी लाकर उसके सामने रख देती । _
रोज़ की तरह रामू उसमें ४ आने डाल देता और बढ़ी फिर उसे उठा
` <>] कर् रत देती । उधर माधो भी अपनी आदत के
माक्षिक तादी की दृकान मँ जाकर ४ आने पैसे
देता ओर तादी लेकर आंख मूद पी जाता।
इसी तरह दिन बीतते जाते थे । रामू की
स डिब्बी पैसे से भरती जाती थी । माधो की
कमाई के पैसे रोज़ ¢ आने के हिसाब से ताड़ी की दूकान पर पहुँच जाते थे ।
उधर माधो पछताता कि वह ४ आने से ज्यादा ताड़ी पर खच कर नहीं कर
पाता ! इधर बल्ली अपनी डिब्बी को पैसे से भरा देख खूब खुश होती ।
माधो की प्यारी वस्तु ताडी उसके पेट म अपना काम करने र्गी ।
सुबह उठते ही उसका सिर दर्द करने ठगता । आंखें छाल होती
जाती थी। वह हमेशा शराबी की तरह बकता रहता । घर में अपनी
मां और स्त्री से हर हमेशा झगड़ता । बाज़ार से ज़रूरी चीजें खरीदने के
'लिये तंगी हमेशा बनी रहती थी ।
इसतरह बारह महीने बीत गये । एक दिन सुबह को माधो की
बूढ़ी माँ घर का आंगन साफ़ कर द्वार पर श्चाद् दे रही थी । रामू कहीं से
एक सुन्दर गाय को छिये हुए आया । गाय का छोटा बछड़ा अपनी,
मां के चारों तरफ़ उछठ रहा था ।
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