दशरथ - नंदन श्रीराम | Dashrath Nandan Shree Ram

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Dashrath Nandan Shree Ram by चक्रवर्ती राजगोपालाचर्या - Chkravarti Rajgopalacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ হহাহশ্নহল श्रीराम कितनी उच्चकोटि के होते थे। उस वर्णन से नागरिको की सस्कृृति और सभ्यता का भी भास होता है । उन दिनो कोशल के राजा दशरथ थे । वह्‌ अपनी राजधानी अयोध्या मे वास करते थे। स्वर्ग के देव लोग भी महान অহাক্ষদী राजा दशरथ को युद्ध मे सहायता के लिए बुलाया करते थे। तीनो खोको मे दशरथ का नाम प्रसिद्ध था। राजा दशरथ की तुलना इद्र और कुबेर के साथ की जाती थी । कोशल की सभ्य प्रजा सदा प्रसन्न रहती थी। असख्य वीर तथा योद्धा नगर की रक्षा के लिए नियुक्त रहते थे। दशरथ के कौशलपूर्ण प्रबंध से शत्रु लोग अयोध्या के पास तक भी नही पहुच पाते थे । दुर्ग की प्राचीर को घेरती हुई नहरो और नाना प्रकार के शत्रुघातक यत्रो से अयोध्या सवेदा अजेय थी | उसका 'अयोध्या' नाम यथार्थ था । यश ओर एेश्वयं मे देवेद्र-तुल्य राजा दशरथ के मत्री भी बडे योग्यथे} आठ मत्री थे । सब-के-सब अच्छे सलाहकार, राजाज्ञाका तुरत पाख्न करने- वाले ओर राजा की सेवा मे तत्पर। इन सचिवो के अतिरिक्त धर्मोपदेश देने तथा यज्ञ आदि विधियो को शास्त्रोक्त ठढगसे कराने के किए वसिष्ठ, वामदेव आदि रजगुरु तथा अन्य उत्तम ब्राह्मण राजा के साथ रहा करते थे। दशरथ के राज्य मे कभी बलपूर्वक कर वसूल नही किये जाते थे । जब कभी अपराधियो को दड दिया जाता तो अपराधी की परिस्थिति और शवित का भी विचार किया जाता था। समर्थ सलाहकार और कर्मचारियों के बीच राजा दशरथ सूर्य की तरह प्रकाशमान थे । दशरथ को राज करते हुए कई वषं बीत गये, कितु उनकी एक मनो- कामना पूरी नही हुई थी। अबतक उन्हे पुत्रलाभ नही हुआ था । एक बार वसत ऋतु मे चितांतुर राजा के मन मे यह बात आई कि 'पुत्रकामेष्टि' और 'अश्वभेध यज्ञ! किया जाय । उन्होने गुरुजनो से राय ली । गुरुजनों ने समर्थन किया। सबने निर्णय किया कि ऋषि ऋष्यश्युग को बुलाया जाय और उनकी देखरेख मे यज्ञ किया जाय ।




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