विचार के प्रवाह | Vichar Ke Pravah
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७)
तव ब्राह्मणी बोली. ..:.. -
जीती रहू' मे. ओौर तम जाकर मरो
इससे अधिक परिताप की स्या वात होगी पाप की ?
तब शीतं सद्गुणए-संयुता द्विज-सुता कहने लगी
है दान की दही वस्त॒ कल्या लोक में
तो व्याग त॒म सेय कसे ।
इस विपद् की घडि्यो मे भी अपनी वहन-के कषे पर बैठा हुआ कुलदीप सा
वालक अपनी तोतली बाणी मे कहता है...... .
` माल्' अचुल को में अवी, वह् है कहां ।
तो कौन ऐसा व्यक्ति है जो ऐसे सुखद परिवारिक वातावरण तथा गाहेस्थ्य
जीवन की छह के लिये मचल न उठे । इस पुस्तक की कछ प्रारंभिक पंक्तियों
को देखिये. ।
यह् विप्र करा परिवार था, शचिक्तिप्त घर कां द्वार था
'पजांप्रसनाकीणं थी दृढ देहली 1 '
श्रागत अतिथियों के लिये शीतल पवन सरभित किये
` मानो प्रथम ही थी पड़ी पुष्पांजली ।
द्विज-वयै विष्नों से रहित, वेदी निकट, शिशुसुत सहित
सानन्द सांध्योपासना था कर रहा ।
परितृप्त गृह सुख भोग से, संत्रस्वरों के योग से
सानों भुवन की भावना था हर रहा ॥
इस पंक्तियों में वर्णित गृहस्थ जीवन में कुछ ऐसां सात्विक आकर्षण है
कि आज के सभ्य,' विद् न्मालिका तथा बातातुकूलित कत्त मे विश्राम करने
डी० डी० टी० की तीकण गंघ तथा होटलों में वेटरों के 'सहारे जीवन यापन
करने वाले सम्य ` नागरिक का मन भी इसकी ' शीतल 'छांह' के <लिये लालायित
हो उठेगा।
पत्नी गूहस्थ जीवन की नींव है । पुरूष को बाहरी संघ में -दतनां निरतं
रहना पडता है, उसे वाह्य प्रभावों के लिये : इतना खुला रखना पडता है कि
उसका व्यक्तिख अति जटिल . चन ज़ाता हैं, उसका व्यवहार कछ विक्षिप्त तथा
असाधारण सा साजुम पड़ने लगता है । ठेसी अवस्था में नारी शान्ति पणं
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