विचार विहान | Vichar Vihan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हत 'उस दावानल ने सारी वनस्पति जला डाली थी, किन्तु यह एक वर्ष मे ही फिर हरियाली कैसे हो गई !” श्रादि मानव ने पहाड की उपत्यका मे धूमते हुए सोचा । उसके निरीक्षण ने बताया कि मिदर मे दबी जडे श्रौर बीज नमी पा कर फूद पड़ते है । बीज पर कुछ मिट्टी भी होनी चाहिए । कुछ च्योटो को भी यही भ्रतुभव हुआ था कि बिल के बाहर रह गए दाने वर्षा मे अपने श्राप फूट पडे थे, बडे होकर शभ्रनेक बालियो का रूप धारण कर गए । अत वे कुछ दाने धूल मे ही छोड़ने लगे । वे सुष्टि पर के प्रथम कृषिकार थे । मनुष्य का सबसे पहला हथियार था खुरपा--पत्थर का बेडौल खुरपा, धातु का सुदर खुरपा, लोहे का तेज खुरपा । बडे खुरपो से बडे काम लेने लगे । किसी दलदली धरती मे धान भारोपित करते बडा खुरपा श्रथवा कही जब धेस कर निकल न सकी तो किसी ने उसे रस्सी से बॉघ कर बैल के ज़ोर से निकाल लिया । धरती श्रधिक सुगमता से उखड गई । हल का श्राविष्कार हो गया । कितु करृषिकारी का काम जो सभो वर्गो का कर्तव्य था अरब विशेष व्यवसाय सममा जाने लगा । ब्राह्मण लेखनी श्रौर शूर्वा सभाल बैठ गया, क्षत्रिय खुरपे और हल के स्थान पर कटार श्रौर भाला सभालने लगा । खेतो से हट कर वह श्राखेट में व्यस्त हो गया । वैश्य हल श्रौर तराजू का धनी था कितु उसने धीरे-घोरे कृषिकारी काकाम दासो से करवाने का प्रबध कर लिया स्वय तराजू लेकर बैठ गया । दास एव सेवक भो भ्रनेक कार्यों में विशेषज्ञ बनने की धुन में उच्चनिम्न भ्रनेक वर्गो में बट गए । काम का सारा बोक शद्रो पर भरा पडा, वही साधन जुठाते थे, सिद्धि और भाग मे मग्न होने वाले अभिजात वर्ग के लोग विलासी बनते गए । फिर भी राजा जनक ने हल चलाया । राजा कुरु ने हल चलाया । मार्कर्डेय क्टषि ने हलभ्वलाया । कणाद ने कृषिकारी की । कुरुक्षेत्र मे श्राज भी श्रनेक क्षत्रिय जातियाँ हल चलाती है, कागडा मे अ्रनेक ब्राह्मण कृषिकार है । बौद्ध काल मे हिसा के भाव ने हल की प्रतिष्ठा गिरा दी थी कितु कृषिकारी का निषेध कभी नही हुमा । विज्ञान ने हल के भ्रनेक रूप बना दिए है । उसकी गति-विधि को बहुत उन्नत कर दिया है, कितु जाने क्यो खाद्य पदार्थो का भ्रमाव रहता ह । शस्त्रो को पृजा ने हल का मह कम कर दिया हं । मानव के पोषण की अपेन्ञा मानव के सहार की योजनाए चल पडो है । राजनीति का भ्रमिशाप यह्‌ है कि हल चलाने वाले हाथो सेही गोला बारूद फिकवाती है । भ्रणु-विस्फोट को धूलि से वनस्पति विषाक्त हो रही है । सारी थल सेना कृषि-सेना बन जानी चाहिए , जल-थल सेना व्यापार सेना । वह्‌ दिन स्वणिम स्वगिक होगा जब हल की एेसी पूजा होगी ।




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