हम्मीरमहाकाव्य | Hammir Mahakavya

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Hammir Mahakavya by मुनि जिनविजय - Muni Jinvijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ह्मी र-महाकाष्य दिल्ली भारत-राष्ट्‌ फा वक्षस्थल है। यह्‌ वक्षस्थल जब तकत किसी विदेशी श्र झभारतीय दात्रु द्वारा ध्राक्रान्त नहीं हुमप्रा तब तक सारा भारत एक प्रकार से श्रपने राष्ट्रीय स्वातंत्य की रक्षा करने में समर्थ रहा, भारतीय-संस्ृति भ्रक्षुण्ण रही, भारतीयों के घारमिक-जीवन पर कोई दृष्ट प्राक्रमण नहीं हुम्रा, भार- तीय समाज-व्यवस्था पर क्र प्रहार नहीं हुमा, राष्ट्र के भिन्न-भिन्न प्रदेश श्रपनी समुद्धि से परिपूर्ण थे, जनजीवन सुव्यवस्थित श्रोर सुनिश्चित था, काइ्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक भव्य संस्कृति का साम्राज्य फैला हुमा था, पूर्व समुद्र से पदिचिम समुद्र तक भावात्मक एकता व्याप्त थी, धमे, श्रथ, कराम श्रौर मोक्ष इन चार पुरुषार्थो की सिद्धि के लिए सारा भारतीय मानव-समाज श्रपने- श्रपने कत्तंव्य में रत रहता था, धार्मिक या सामाजिक भरत्याचार स्वेत्र निन्य ग्रोर जघन्य समभा जताथा। सब लोगोंमें प्रहिता, भूतदया, दान, तप, संयम, सदाचार दे भावोंकीप्रतिष्ठाथी भ्रौर यथायोग्य उनका भ्राचरण करने की श्रमिलाषा रहती थौ । परिश्रमी किसान कषिकमं दारा जनता को खाद्य साम्नी उपलब्ध करता था । उद्यमो व्यापारी वाणिज्य-व्यवहार द्वारा लोगों को खाये- तर वस्तुएं प्राप्त कराता भोर देश-विदेशों में जाकर श्राथिक समृद्धि को बढाता था। राज्य-शासक-वगं प्रान्तर-बाह्य शत्रभ्रो से भ्रपने प्रजाजनों की रक्षा करता था । देश को संस्कृति श्ौर संपत्ति दोनों की रक्षा का भार इस शासक- वग पर रहता धा ग्रौर इसकै लिए वे सदेव भ्रपने प्राणों की श्राहुति देने को तत्पर रहते थे । इस प्रकार श्रपने समकालीन ससार में भारत एक बहुत ही उत्तम संस्कार-संपन्न श्रौर समृद्धि-परिपुर्ण राष्ट्र माना जाता था । भारतीय दासकों ने कभी किसी विदेशीय सत्ता श्रोर प्रजा पर श्राक्रमण करने की श्र उसकी समृद्धि लुट लाने की दुष्ट कामना नहीं की । ना ही किसी के धर्म-संरकार नष्ट करने की कल्पना की श्रौर ना ही किसी वर्ग-विश्षेष पर श्रत्याचार कर उसके सामाजिक जीवन को ही भ्रष्ट करने का कुत्सित-कर्म किया । भार- तीयों की ऐसी भद्र-जीवन-प्रणाली भ्रनेक शताब्दियों तक शान्तिपूवंक चलती रही यी) समृद्धि श्रौर संस्कृति की स्थिरता के साथ बोद्धिकं क्षमता भी भारतोयोकी सब से श्रेष्ठ थी श्ौर भारत की ज्ञानरादि का लाभ उठाने के लिए चीन, तिब्त्रत, जावा, कम्बोडिया, बर्मा, ईरान, भरव भ्रादि देशो के भ्रनेक जिशासु यहां आते थे भ्रौर भारत के ज्ञान-भण्डार से भ्रपने देश के लोगोंके लिए ज्ञानाजन किया करते थे । भारत के कई ज्ञानी पुरुष भी उन-उन देशों में नानजा कर भारत के सत्संस्कारो का प्रचार करते रहते ये भौर भ्रसंस्कारी समाज को संस्काराभिमुख




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