भारत ज्ञानकोश खंड 2 | Bharat Gyan Kosh Part2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
159.16 MB
कुल पष्ठ :
534
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खजुराहो
और इसकी अवस्थिति, इसकी ऊंची लहरों (12 मीटर) और प्रवेश करने वाली लहरों
की तीव्र गति (6-7 नॉट) का कारण है. शैवाल और रेतीले किनारे नौ-परिवहन के
लिए इसे दुर्गम बनाते हैं और खाड़ी में स्थित सभी बंदरगाहों को लहरों व नदियों की
बाढ़ द्वारा लाए गए गाद से काफी नुकसान हुआ है.
खाड़ी की पूर्व दिशा में भरूच (भारत का एक प्राचीनतम बंदरगाह) और सूरत (भारत
और यूरोप के बीच का आरंभिक वाणिज्यिक संपर्क स्थल के रूप में पहचाना गया है)
हैं. खंभात खाड़ी के मुहाने पर स्थित है. यद्यपि खाड़ी पर स्थित बंदरगाहों का महत्त्व
स्थानीय मात्र ही है, लेकिन तेल के मिलने और खोज प्रयासों ने, विशेषकर भरूच के
निकट, खाड़ी के मुहाने और बॉम्बे हाई के अपतटीय क्षेत्रों में वाणिज्यिक पुनरुत्थान
हुआ है.
खजुराहो
ऐतिहासिक नगर, प्राचीन नाम 'खर्जूरवाहक', उत्तरी
मध्य प्रदेश राज्य, मध्य भारत. यह प्रसिद्ध पर्यटन और
पुरातात्विक स्थल है, जिसमें हिंदू व जैन मूर्तिकला
से सुसज्जित 25 मंदिर और तीन संग्रहालय हैं. 900
से 1150 ई. के बीच यह चंदेल राजपूतों के राजघरानों
के संरक्षण में राजधानी और एक मंदिर नगर था,
जो एक विस्तृत क्षेत्र 'जेजाकभुक्ति'”- अब मध्य प्रदेश
का बुंदेलखंड क्षेत्र -के शासक थे. मूल नगर 21
वर्ग किमी में फैला हुआ था और उसमें 85 मंदिर थे,
जो उत्तरवर्ती राजाओं और उनके मंत्रियों द्वारा बनवाए
गए थे. 11वीं शताब्दी के उत्तरा््ध में चंदेलों ने
पहाड़ी किलों को अपनी गतिविधियों का केंद्र बना
लिया, लेकिन खजुराहो का धार्मिक महत्त्व 14वीं
शताब्दी तक बना रहा, इसी काल में अरबी यात्री
इब्न बतूता यहां योगियों से मिलने आए थे. खुजराहो
खजुराहो में कंदर्य महादेव मंदिर, मध्य प्रदेश पव्में
सौजन्य : देवांगना देसाई धीरे-धीरे नगर से गांव में परिवर्तित हो गया और
फिर यह लगभग विस्मृति में खो गया.
1838 में एक ब्रिटिश इंजीनियर कैप्टन टी.एस. बर्ट को अपनी यात्रा के दौरान अपने
कहारों से इसकी जानकारी मिली. उन्होंने जंगलों में लुप्त इन मंदिरों की खोज की
और उनका अलंकारिक विवरण बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी के समक्ष प्रस्तुत
किया. 1843 से 1847 के बीच छतरपुर के स्थानीय महाराजा ने इन मंदिरों की मरम्मत
कराई. मेजर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम ने इस स्थान की 1852 के बाद कई यात्राएं
कीं और इन मंदिरों का व्यवस्थाबद्ध वर्णन अपनी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ डंडिया
श्पिद्स में किया. खजुराहो के स्मारक अब भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की
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