आरण्यक | Aaranyak

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Aaranyak by विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय - Vibhuti Bhushan Vandyopadhyay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय - Vibhuti Bhushan Vandyopadhyay

Add Infomation AboutVibhuti Bhushan Vandyopadhyay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पहला परिच्छेद [ प्क ] वात पंद्रह-सोलह साल पहले की हैं। वी० ए० पास करके कलकत्ता में बेकार बैठा था । खाक तो बहुत जगहों की छानी, फिर भी कोई नौकरी नहीं नसीव हुई। सरस्वती-पूजा का दिन। मेस में चूँकि बहुत दिनों से रह रहा था, इसलिए वे निकाल तो नहीं सकते थे, मगर मारे तकाजों के मैनेजर ने नाक में दम कर रखा था । मेंस में सरस्वती की प्रतिमा विठाई गई थी । घूम- घाम भी कुछ वुरी नही हो रही थी। सुवह उठकर मैं सोचने लगा, आज तो सब जगह छुट्टी हूं। एकाघ जगह कुछ उम्मीद भी थी, तो आज तो कही भी कुछ होने-हवाने से रहा । उससे तो यही बेहतर हैं कि घूम-चूम- कर मूर्तियाँ देखता फिं | इतने मे मेस का नौकर जगन्नाथ कागज की एक चिट थमा गया । एडकर देखा, मैनेजर ने तकाजा लिख भेजा था । सरस्वती -पूजा के उपलक्ष मे आज मेस मे खान-पान की खास तयारी की गई हं। मेरे जिम्मे दो माह के रुपए वाकी पड़ ह । सो नौकर के हाथ कम-से-कम दस रुपए तौ जरूर ही भिजवा दू । यदि यह्‌ न वन पडे, तो कछ से अपने खाने का कही और ठिकाना करूँ | बात तो वडी वाजिव थी ; पर अपनी कूल पूजी महज दो रुपए और कुछ आने पैसों की ही थी । कोई जवाव दिए विना ही मैं मेंस से वाहर निकल पड़ा । मुहल्ले मे कई जगह पूजा के वाजे वज रहे थे, गली के मोड़ पर जमा होकर वच्चे शोर मचा रहे थे । अभय हलवाई की दूकान में तरह-तरह की ताजी मिठाइयाँ थालो मे सजी रखी थीं । मुख्य मार्ग में कालेज-होस्टल




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now