आरण्यक | Aarnayak

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Aarnayak by विभूतिभूषण वन्द्योपाध्याय - Vibhuti Bhushan Vandyopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्‌ ৮ मगर अपनी यह स्मृति आनंद की नहीं, दुःख की है । स्वच्छंद प्रकृति की बह लीला-भूमि मेरे ही हाथों विनष्ट हुई। में जानता हूँ कि इसके लिए खल-देवता मुझे कभी साफ न करेंगे। सुना है, अपने से अपने अपराध की आत कने से उसका भार थोड़ा हल्का होता हैं। इस कहानी की अवतारणा इसीलिए हुई है।




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