बाल जगत की ऊषा | Bal Jagat Ki Usha

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : बाल जगत की ऊषा  - Bal Jagat Ki Usha

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

गिजुभाई बधेका - Gijubhai Badheka

No Information available about गिजुभाई बधेका - Gijubhai Badheka

Add Infomation AboutGijubhai Badheka

दीप नारायण - Deep Narayan

No Information available about दीप नारायण - Deep Narayan

Add Infomation AboutDeep Narayan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
खडे हुए विना ही कह उठेगे गिजुभाई ये क्या गप्पे हांक रहे है ? हमने तो ऐसा कुछ देखा नहीं ? और मेरे साथी कई शिक्षक-परीक्षक जरा दुखी होकर कहने लगेगे श्रीमान्‌ कितने परिश्रम से हम अपने शिक्षण मे सुधार कर रहे है और आप है कि उसे देखे-समझे बिना ही क्या प्रज्ाप किये जा रहे हो ? मैं इन सवों के मधुर उलाहनों को सुन लूंगा पर कहूगा जरूर | अलबत्ता गिने-चुने घर और थोड़े बहुत शिक्षक नूतन शिक्षण को--मए प्रकाश को ग्रहण करने लगे हैं फिर भी स्वयं चारों ओर नजरे उठाकर जरा बताइए तो सही कि हमारे आज के घरों में भी बालकों की दशा कैसी है क्या ऐसी बात नहीं है कि दिनोदिन हम अधिक से अधिक कार्य-व्यक्त होते जा रहे है और परिणामस्वरूप धन-संपन्न होने के कारण अपने बालकों को नौकरों या आया के हाथ या एकाध ट्यूटर के भरोसे छोड देते है ? आज मोटरों और मिल के भौपुओं की आवाज में लाखो असभावित बालकों का रुदन हमे सुनाई तक नही देता | गंदगी में सड़ने वाले बालकों की संख्या पर गौर करें तो वह साफ-स्वस्थ बालकों से कम होगी या ज्यादा ? क्या बच्चे खिलौनों से संतुष्ट हो जाते हैं क्या बालकों के लिए घर में एकाध अलग से संदूक का इंतजाम किया हुआ है और क्या पाठशालाओ की स्थिति मे बदलाव आया है ट्रेनिंग कॉलेजों से अच्छी से अच्छी शिक्षण-विधियां सीखकर आए शिक्षक क्या अपनी पाठशालाओ मे उनके अनुसार शिक्षण-कार्य करते हैं यूं कहिए ना कि वे थोड़ा बहुत किडरयार्टन और मॉण्टेसरी-पद्धति के बारे में जानते हैं। क्या उनकी पाठशालाओं में फ्रॉबेल के उत्साहवर्द्धक खेल हैं। क्या उनमें मॉण्टेसरी का बाल-सम्मान है। कहीं शिक्षको का उत्साह पाठ्यक्रम परीक्षा-पद्धति तथा जीवन की जटिलताओं के कारण कुचल तो नहीं गया ? हाय सजा मिल रही है तो इनाम बढ़ने लगे हैं। रटाई घट रही है तो विविध युक्तियो से आनद उत्पन्न करने वाले प्रयत्नों द्वारा दिया जाने वाला शिक्षण बढ़ने लगा है। लेकिन इनके परिणामस्वरूप वास्तविक ज्ञान नहीं बठ रहा। संगीत चित्रकला आदि बट रहे है तो एक ओर पाठ्ययक्रम के विषय बढ़ रहे है 17




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now