तुलसी आधुनिक वातायन से | Tulasi Adhunik Vatayan Se
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44 MB
कुल पष्ठ :
329
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मपलमानों अौर इसलामकी सशक्त सांस्कृतिक चुनौती आदि । हिन्दू सामन्त-युगम
न तो लोकभाषाओंने साहित्यिक अस्तित्व प्राप्त किया था, और न ही व्यापारका
इतना व्यापक अन्तर्राष्ट्रीकरण हुआ था । उस युगमें धर्म राजदक्तिसे संलग्न
था और मसलिम-यगकी तरह वह जनजीवनके आन्दोठनके रूपमें नहीं प्रवाहित
हो रहा था । इसलिए मुसलिम मध्यकार शुरूमें कई अथमिं व्यापक प्रजातान्विक
चेतना तथा सांस्कृतिक अन्तरावठम्बनका प्रसार करतां) इसी चरणम् हम
तुलसीको पा जाते हँ । इस चरणमें सभ्यता ओर संस्कृतका एक नया बृहत्तर
पीठ मन्दिरों-मठों तथा लोकचित्तमे क्रायम हो ग्या थाजो दरबारोसे कहीं
विराट था। अतः मसलिम मध्यकालमें सभ्यताकौ परम्पराका प्रसार दरबारोके
द्वारा न होकर भक्ति-आन्दोलनके केन्द्र बिन्दुओं--आचाय, मन्दिर, तीथ आदि--
के द्वारा हुआ । जिस तरह पहले न्षि, मुनि, सन्त आदिने साहित्य:रचना की जो
बादमें कालिदास, भवभूति, भारवि, माघके हाथोंसे सँवारी गयी थी, उसी तरह
मुखलिम मध्यकालमें पहले सन्तों भक्तों आदिने साहित्य रचा जो बादमें रीति-
कालीन कवियों-द्वारा संवारा गया । इस तरह भारतीय मध्यकालमें सामन्तीय
संस्कृतिका चक्र दो बार पर्याप्त एक-जैसी ऐतिहासिक निश्चयता लेकर घूमा । इस
चक्रने कला-इतिहासके रचना-अक्षमें पहले हमें रामवत्त दिया जिसे मैं परित्यागका
गादर्श कहूँगा, बादमें कृष्णवृत्त दिया जिसे मैं सुखोपभोगका आदर्श कहूँगा, भौर
तीसरे पृथ्वी राज-रत्नसेन-वृत्त दिया जिसे में शूरनायकत्वका आदर्श कहूँगा। ये
दृत्त क्रमश: पौराणिक चेतनासे ऐतिहासिक वास्तविकताकी ओर बढ़ रहे हैं ।
शौर्य-युगमें रोमांसका पत्लवन हुआ है तथा शोछयुगमें महाकाव्योंका । - मध्ययगमें
शूरवीर और चरितनायक अर्थात् पुरुषोत्तम प्राप्त हुए हैं। राम र्यादा-पुरूषोत्तम
हैं; कृष्ण 'छीला-पुरुषोत्तम' ! क्यों ?
ये तीन वृत्त मध्यकालीन आइशोंकि सावभौम वत्त हैं जो भारतके आरम्भिक
मुसलिम मध्यकालमें एक साथ घुल-मिल गये : अर्थात् शक्ति, रीर ओर सौन्दर्य-
का त्रित्व कायम हो गया ।
_ सम्यताके आरम्भिक . कालोंमें ऐतिहासिक धारणाएं मिथकशास्त्रीय
अतिकल्पनाओं ( फ़ेंसीज़ ) की निर्मितियोंपर आधारित होती हैं जिनमें इतिहास-
को तथ्यात्मकताका अभाव होता है । वे “ऐतिहासिक आदर्दो' की प्रधानतावाली
भआदरपूण अतात बन. जाती हूं। अतः उनमें इतिहास-बोध था वास्तविकके
बजाय पौराणिक बोध या आदर्श जीवन प्रधान हो जाया करता है । इस जीवनमें
एतिहासिक आदश मिथकीय होते हँ एवं अतीतको सम्पूर्णताकी एक आम-तसवीर `
खिच-सी जाती है । जब मनुष्य सर्वोत्कष्ठता ( एक्सिलेंस ) की धारणाओंको काल-
कह
_ हैं....................... तुलसी: आधुनिक वातायनसे
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