तुलसी आधुनिक वातायन से | Tulasi Adhunik Vatayan Se

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Tulasi Adhunik Vatayan Se by रमेश कुंतल मेघ - Ramesh Kuntal Megh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मपलमानों अौर इसलामकी सशक्त सांस्कृतिक चुनौती आदि । हिन्दू सामन्त-युगम न तो लोकभाषाओंने साहित्यिक अस्तित्व प्राप्त किया था, और न ही व्यापारका इतना व्यापक अन्तर्राष्ट्रीकरण हुआ था । उस युगमें धर्म राजदक्तिसे संलग्न था और मसलिम-यगकी तरह वह जनजीवनके आन्दोठनके रूपमें नहीं प्रवाहित हो रहा था । इसलिए मुसलिम मध्यकार शुरूमें कई अथमिं व्यापक प्रजातान्विक चेतना तथा सांस्कृतिक अन्तरावठम्बनका प्रसार करतां) इसी चरणम्‌ हम तुलसीको पा जाते हँ । इस चरणमें सभ्यता ओर संस्कृतका एक नया बृहत्तर पीठ मन्दिरों-मठों तथा लोकचित्तमे क्रायम हो ग्या थाजो दरबारोसे कहीं विराट था। अतः मसलिम मध्यकालमें सभ्यताकौ परम्पराका प्रसार दरबारोके द्वारा न होकर भक्ति-आन्दोलनके केन्द्र बिन्दुओं--आचाय, मन्दिर, तीथ आदि-- के द्वारा हुआ । जिस तरह पहले न्षि, मुनि, सन्त आदिने साहित्य:रचना की जो बादमें कालिदास, भवभूति, भारवि, माघके हाथोंसे सँवारी गयी थी, उसी तरह मुखलिम मध्यकालमें पहले सन्तों भक्तों आदिने साहित्य रचा जो बादमें रीति- कालीन कवियों-द्वारा संवारा गया । इस तरह भारतीय मध्यकालमें सामन्तीय संस्कृतिका चक्र दो बार पर्याप्त एक-जैसी ऐतिहासिक निश्चयता लेकर घूमा । इस चक्रने कला-इतिहासके रचना-अक्षमें पहले हमें रामवत्त दिया जिसे मैं परित्यागका गादर्श कहूँगा, बादमें कृष्णवृत्त दिया जिसे मैं सुखोपभोगका आदर्श कहूँगा, भौर तीसरे पृथ्वी राज-रत्नसेन-वृत्त दिया जिसे में शूरनायकत्वका आदर्श कहूँगा। ये दृत्त क्रमश: पौराणिक चेतनासे ऐतिहासिक वास्तविकताकी ओर बढ़ रहे हैं । शौर्य-युगमें रोमांसका पत्लवन हुआ है तथा शोछयुगमें महाकाव्योंका । - मध्ययगमें शूरवीर और चरितनायक अर्थात्‌ पुरुषोत्तम प्राप्त हुए हैं। राम र्यादा-पुरूषोत्तम हैं; कृष्ण 'छीला-पुरुषोत्तम' ! क्यों ? ये तीन वृत्त मध्यकालीन आइशोंकि सावभौम वत्त हैं जो भारतके आरम्भिक मुसलिम मध्यकालमें एक साथ घुल-मिल गये : अर्थात्‌ शक्ति, रीर ओर सौन्दर्य- का त्रित्व कायम हो गया । _ सम्यताके आरम्भिक . कालोंमें ऐतिहासिक धारणाएं मिथकशास्त्रीय अतिकल्पनाओं ( फ़ेंसीज़ ) की निर्मितियोंपर आधारित होती हैं जिनमें इतिहास- को तथ्यात्मकताका अभाव होता है । वे “ऐतिहासिक आदर्दो' की प्रधानतावाली भआदरपूण अतात बन. जाती हूं। अतः उनमें इतिहास-बोध था वास्तविकके बजाय पौराणिक बोध या आदर्श जीवन प्रधान हो जाया करता है । इस जीवनमें एतिहासिक आदश मिथकीय होते हँ एवं अतीतको सम्पूर्णताकी एक आम-तसवीर ` खिच-सी जाती है । जब मनुष्य सर्वोत्कष्ठता ( एक्सिलेंस ) की धारणाओंको काल- कह _ हैं....................... तुलसी: आधुनिक वातायनसे




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