सात इनकलाबी इतवार भाग - 1 | Saat Inkalabi Itawar Bhag - 1

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Saat Inkalabi Itawar Bhag - 1 by नारायणस्वरूप माथुर - Narayanasvarup Mathur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ सात इनक़लाबी इतवार छ ५ रेशन का डेलीगेट चुना जाता-जाता रह गयां श्रौर मैं कमेटी का मेम्बर हूँ गोकि मेरी जगह नीची है। वह भी इस उधेड़-बुन में है कि जिस लैम्प फैक्टरी में वह काम करती है उसकी श्रोर से सिंडीकेट की डेलिगेट चुन ली जाय; लेकिन उसका नाम कोई भी क्यों पेश करने लगा जब कि वह इतनी श्रनमिश्ञ है कि मीटिंग में, सिवाय पर्चें बाँटने के कुछ श्रौर कर ही नहीं सकती ! वह जर्मिनल की पुन्नी है, धू्ज्वा वगं में इस बात का जितना महत्व होता वेसां यहाँ कुछ भी नदीं है । हमारे यहाँ तो हर किसी को ग्रपने काम की श्रौलाद होना पढ़ता है जैसा कि मैं- खेर जाने दो । तेकिन इससे होता ही कया है ? एक दिन जब मेरे पिता गिरजा घर से लौटे तो माता से तकरार हो गई श्रौर मार- मार कर उसकी जाम से ली। क्यों १ ऊँह ! ये उन दोनों की श्रपनी बात थी। मैं बारह वर्ष का था, मैंने घर छोड़ दिया । मै बहूधा भूखा भी रहता था श्रौर सभी मौसमों में घर से बाहर श्राकाश के नीचे सोना पड़ता था ; किन्तु जैषा किम ऊपर कह चकारं यष्ट सब बातें कोई महत्व नहीं रखतीं। झाज तो में कॉमरेड लियनश्यो बिलाकम्पा हूँ । यदि श्राप ।इसका मतलब नदीं समते तो प्िंडीकेट जाकर पूछ लीजिये । मैं इड़तालवाद को इतनी श्रच्छी तरद्द जानता हूँ कि संगठन विषयक मामलों में मैं कभी चूक नहीं कर सकता । बाक़ी सब बातें नगण्य जैसी हैं। मैं श्रपने संगठन से सम्बन्ध रखनेवालें उत्कृष्ट पचो कै श्रलाया श्रौर कोई समाचारपच नक्ष पढ़ता । यूर्ज्वा पन्न झपनी तसबीरों को छोड़कर महज कूड़ा-करकट हैं । उन्हें रिपोर्ट करना श्राता दी नहीं । ज़रा देखिये तो सही कि वह हमारी समाशों श्ौर तहरीक के सम्बन्ध में क्या' कहते हैं । सब-कुछ लोगों को 'आन्वेरे में रखने के विचार से । बह न इमारे कार्य के सम्बन्ध में दी कुछ जानते हैं. शऔर न श्रपने दी । वह शब्दों की शुत्थियाँ बनाकर




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