तत्त्व चिंतामणि भाग - 7 | Tattv Chintamani Bhag - 7
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
524
श्रेणी :
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No Information available about श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मयादा-पुरुषोत्तम श्रीराम १३
. कृत्येष्वचोदितः पित्रा ॒सर्वखान्तःपुरख च ।
गतिश्च शरणं चासीत् स रामोऽच प्रवत्खति ॥
कौसल्यायां यथा युक्तो जनन्यां वतेते सदा ।
तथेव वर्ततेऽखासु जन्मप्रभृति राघवः ॥
( वा० रा० रे । २० | २-३ )
'जो राम किसी काम-काजके विषयमे पिताके कुछ न कहनेपर
भी सारे अन्त.पुरकी गति और आश्रय थे, वे ही आज वनमें जा
रहे हैँ । वे जन्मसे ही जैसी सावधानीसे अपनी माता कौसल्याके
साथ बर्ताव करते थे, उसी प्रकार दम सबके साथु भी करते थे |
इससे बढकर श्रीरामकी मातृ-मक्तिफा प्रमाण भर क्या होगा |
पित्-भक्ति
इसी प्रकार श्रीरामकी पितर-मक्ति मी बडी अदूमुत थी ।
रामायण पढ़नेवाछोंसे यह बात छिपी नहीं है कि पिताका आज्ञापार्न
चरनेके लिये श्रीरामके मनमें कितना उत्साह, साहस और ढ़
निश्चय था | माता कैकेयीसे बातचीत करते समय श्रीराम कहते हैं---
अह॑ हि वचनाद् राज्ञः पतेयमपि पावके ।
भक्षयेयं विषं॒॑तीक्ष्णं॑ पतेयमपि चार्णवे ॥
( बा० रा० २ १८ } २८-२९ )
न ह्यतो धर्मचरणं किश्िदस्ति महत्तरम् ।
यथा पितरि शश्रुषा तख चा वचनक्रिया]
(वा रा० २१९२२)
भम महाराजके कहनेसे आगमे भी कूद सकता ह, तीत्र विष-
का पान कर सक्ता दँ ओर समुद्रम भी गिर सकता हूँ) क्योंकि
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