तत्त्व चिंतामणि भाग - 7 | Tattv Chintamani Bhag - 7

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Tattv Chintamani Bhag - 7 by श्री जयदयालजी गोयन्दका - Shri Jaydayal Ji Goyandka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मयादा-पुरुषोत्तम श्रीराम १३ . कृत्येष्वचोदितः पित्रा ॒सर्वखान्तःपुरख च । गतिश्च शरणं चासीत्‌ स रामोऽच प्रवत्खति ॥ कौसल्यायां यथा युक्तो जनन्यां वतेते सदा । तथेव वर्ततेऽखासु जन्मप्रभृति राघवः ॥ ( वा० रा० रे । २० | २-३ ) 'जो राम किसी काम-काजके विषयमे पिताके कुछ न कहनेपर भी सारे अन्त.पुरकी गति और आश्रय थे, वे ही आज वनमें जा रहे हैँ । वे जन्मसे ही जैसी सावधानीसे अपनी माता कौसल्याके साथ बर्ताव करते थे, उसी प्रकार दम सबके साथु भी करते थे | इससे बढकर श्रीरामकी मातृ-मक्तिफा प्रमाण भर क्या होगा | पित्-भक्ति इसी प्रकार श्रीरामकी पितर-मक्ति मी बडी अदूमुत थी । रामायण पढ़नेवाछोंसे यह बात छिपी नहीं है कि पिताका आज्ञापार्न चरनेके लिये श्रीरामके मनमें कितना उत्साह, साहस और ढ़ निश्चय था | माता कैकेयीसे बातचीत करते समय श्रीराम कहते हैं--- अह॑ हि वचनाद्‌ राज्ञः पतेयमपि पावके । भक्षयेयं विषं॒॑तीक्ष्णं॑ पतेयमपि चार्णवे ॥ ( बा० रा० २ १८ } २८-२९ ) न ह्यतो धर्मचरणं किश्िदस्ति महत्तरम्‌ । यथा पितरि शश्रुषा तख चा वचनक्रिया] (वा रा० २१९२२) भम महाराजके कहनेसे आगमे भी कूद सकता ह, तीत्र विष- का पान कर सक्ता दँ ओर समुद्रम भी गिर सकता हूँ) क्योंकि




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