भक्तिकाव्य की स्त्री विषयक चेतना का समाजशास्त्री अध्ययन | Bhaktikaavya Ki Strii Vishyak Chetna Ka Samaajshaashtriya Addhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही दलित ओर शोषित थे, जबकि न तो स्त्रियाँ पुरुषों से ओर न ही अवर्ण सवर्णो से हीन होते है, बल्कि यही कि अमानवीय समाज- व्यवस्था ने उन्हे हीन बना रखा है 1**12 सत्तनतकालीन हिन्दू समाज में स्त्रियों की स्थिति में शायद ही कोई परिवर्तन हुआ। मुस्लिम आक्रमण ओर मुस्लिम समाज के साथ अन्तः क्रिया के परिणामस्वरूप पर्दा प्रथा, बाल विवाह व सती प्रथा को बढ़ावा व व्यापकता ही प्राप्त हुरई। पति के प्रति पत्नी कौ एकपक्षीय निष्ठा ओर सेवा के दायित्व लादने वाले पुराने नियम कायम रहे ! परित्याग, संक्रामक रोग आदि जेसी विशिष्ट परिस्थितियों मेँ विवाह विच्छेद की अनुमति थी परन्तु इस पर भी स्मृतिकारो में विवाद है ओर सम्भवतः व्यवहार में ऐसा करना संभव नहीं रहा होगा। विधवा-विवाह एक वर्जित प्रथा बनी रही जबकि सती-प्रथा जेसी अमानुषिक प्रथा को अनवरत होने वाले युद्धं व स्त्री हरण में बढ़ावा ही दिया। अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता ढोलकों की ऊँची आवाज के साथ एक स्त्री द्वारा स्वयं को अपने मृत पति की चिता पर जलाए जाने के दृश्य का मर्मातक वर्णन किया है 13 सम्पत्ति के अधिकार से सन्दर्भ में पुत्रहीन होने पर विधवा के अधिकार को लेखकों ने स्वीकार किये, लेकिन कई शर्तो के साथ। फिर भी ऐसा प्रतीत होता हैं कि सम्पत्तिगत अधिकारों में कुछ वृद्धि हुई। मुस्लिम समाज में स्त्रियों को हिन्दू स्त्रियों की अपेक्षा कुछ अधिक सम्पत्ति सम्बन्धी अधिकार प्राप्त थे। पर्दा-प्रथा उच्च वर्गीय हिन्दू व मुस्लिम दोनों ही समाजों में व्याप्त थी और आक्रमणकारियों द्वारा हिन्दू महिलाओं को पकडे जाने के भय ने बाल विवाह कौ तरह इसे भी व्यापकता प्रदान कौ। इस सन्दर्भ में सतीश चन्द्रा का कहना है कि, ** शायद पर्दा-प्रथा की वृद्धि का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कारक सामाजिक चरित्र था। यह समाज के उच्च वर्गो का प्रतीक बन गई, और ऐसे सभी लोग जो समाज की दृष्टि में आदरणीय और सम्मानित होना | 7 1




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