श्री धर्म तत्त्व संग्रह | Shri Dharm Tattv Sangrah

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Shri Dharm Tattv Sangrah by अमोलक ऋषि - Amolaka R̥shi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री धर्मत्वं संग्रह १३ नहींहैतोक्या सरे कह्नेसेयाजायगा?रत्नको काच कहने से कया रतन काच हो सकता है ? अब अगर मैं इस पर क्रोध करता हूं तो मेरे जैसा ज्ञानी दूसरा कौन होगा ? फिर ज्ञानी भीर अजनी में कथो भेद रह जायया ?' (१०) अगर मैं अपनी इच्छा से दूसरे के वचन को भी सहने नहीं कर सक्ता तो नरक भौर तिर्यच गति के वध-त्रेधन आदि घोर दुःखों को किस प्रकार सहन कर सक़ु गा ? नरक के दुः्बो को तुलना मे गालो सुनने का दुःख तो उतना ही दै जितना मुमेरु की तुलना में राई या सरसों का एक दाना ! (११) फिसो समय कोई मनुष्य अत्यन्त देष सै प्रेरित होकर घू से मारे, लात मारे या लघ्ठी जादि का प्रहार करे तो शानो पुरप को विचार करना चाहिए:-इस मारने वाले के साथ मेरा पुर्वजन्म का बेर होगा । मैंने पहले इसका गुध विगाद्‌ किया होगा 1 बहू ऋण अभी तक मेरे सिर चढ़ा हुआ था । सब उसे यद चमूत कर रहा है तो अच्छी चात है । मु ऋण से मुक्त हो जाना हो चाहिए । आज नहीं तो फिर झाभी न कभी हिया हुआ चुकाना तो पढ़ेगा हो । शास्म्र में फहा है- फडाण कम्साण न मोक्ख अत्यि 1 . 1 --धी उंसराध्यदन, ४, अर्पानुनकिये हुए मर्मों को बिना भोगे छुटकारा नहीं सिले सकता 1 ः इस समय पूर्व भव ने बेर का ऋण सूकाने में समर्थ है, तो प्रसम्तायूर्वक चुका देना चाहिए । इस समय प्रोप करने नया ऋण नहीं करना घाहिए | : हुप्टान्त -एग किसान को किसो सफ्टूदार के सो रुपये पने हैं 1 सलाहकार रपये मागने लाया 1 संद दिसान सगर साहू- कार का झादर-सरकार मारके दे किट ! में गरोज




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