रसकलस | Raskalash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
618
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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स्थान-स्थान पर दिखलाई गई है । दूर से देखने पर दिव्यदामाभिराम
पाश्चात्य देशों के उन दुर्गुणो की मिथ्या मनोददरता के वड़ी युक्ति तथा
मार्भिकता से दिखलाने की चेप्टा की गई है, जिनकी वहिरंग-रंग रुचिरता
स समाकृष्ट हो, श्रांत नवयुवक सगछप्णा में भूले-भटके तथा तंग झ्राये
कुरंग-बुंद-से पथ-श्रष्ट झथच तापनतप्त वन पश्चात्. पश्चात्ताप करते फिरते
है 1 यदी उपाध्यायजौ का कवि-संदश देश के लिये जान पढ़ता हे |
स्चना का एक दूसरा प्रधान उद्देश्य भी यहीं प्रतीत होता है । वास्तव मे
प्रत्येक लेखक एवं कवि का यहा मुख्य कर्तन्य-क्म तथा परिपालनीय
धर्म ह कि वह् अपनी रचना के द्वारा घ्मपने देश तथा समाज की
समय-संमानित सभ्यता-संस्कृति का संरक्षण करता हुआ' प्राचीन परंपरा
करा ययेष्ठ ( यथावश्यकता ) परिमाजेन एवं परिशोधन कर श्रपने वास्त-
विक धर्म-कर्म का प्रचार करे, और पर-प्रभाव-प्रभावित एवं भश्रम-भूल'
से भूले हुए नवयुव को को सत्पथ पर झअश्रतर कर देश-जाति के हित-
संपादन में लगे-लगाये । जो लेखक या कवि श्रपने एेसे उत्तरदायित्व
को नहीं समकते रौर देश-जाति के द्विताहित का ध्यान नहीं रखते या
परखते वे वास्तव में रचयिता-रालि-भूपण होकर भी देश-दूपण ही
ठहरते हैं । उनकी अमूल्य रचनाएँ भी विना मूल्य हो छुप्त होती हुई
पने साथ समय के राप्त-गहर मे उन्हें भी सदा के लिये सुप्त कर देती
हैं । कोई भले दी उस प्रकार के कवि को उपदेशक तथा समाज-सुघारक
कहता हुआ उसके स्थान को कुछ दूसरा दिखलाने का प्रयन्न करे श्रौर
उसे कुलं कम महत्व दे-ययपि वास्तव में इन गुणे के कारण उसका
स्थान एवं महत्त्व और अधिक बढ़ जाता हे--किंतु ऐसा सममदार
संसार उस व्यक्ति के ऐसे कथन को ही महत्व न देगा जो यह जानता
है किकवि दी बह व्यक्ति ह जो देश-जाति को इन्त एवं श्रवनत करने,
वनानि.धिगाडने, योम्यायोग्य पद देने मूँ समये होता है । कवि तो वरतुतः
चटिका खष्टा रै ( “कविमेनीपो परिभू. स्व्रयम्भूः --षेद् } वदी खि
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