चक्कर क्लब | Chakar Kalb
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साहित्य, कला ग्रौर प्रेम | १५
“प्ररे प्रेम तो वहत वडी चीज ई पर कोई प्रेम कर सकें तव तो उसे कहते
है जैसे मीरा प्रेम करती थीं । उन्हें प्रेम दीवानी कहते थे श्रौर जसे रावा नें
प्रेम किया था 1
“यह तो सब ठीक है, परन्तु वह प्रेम होता क्या --दा्यनिकने
फिर पूछा ।
चक्कर-क्लव के साहित्यिक वोले,--“प्रेम-प्रेम सव कोई के प्रेम न जाने
कोय } शब्दो में प्रेम को प्रकट कर देना कठिन है । यह मन की स्वर्गाय
भावना है । क्या खुव कहा हैं शायर ने, जिन्हों का इदक सादिक हू वी कब
फरियाद फरते हैं । लवों पै मोहरे खामोशी दिलों में याद करते हैं ।”--श्रीर
एक गहरी साँस ले, श्रपने रूखे लम्वे केशों को छिटका कर उन्हों ने कहां
“प्रेम बिना सूना हैं संसार ! प्रेम ही है जीवन का सार ? वह साहित्य की
सुगन्घ हैँ। वह वकने की चीज नदी, झ्नुभव की वस्तु है ।”
गली के एक झ्ौर महाद्यय वोल उठे--“प्रेम क्या, मोह हैं एक किस्म का !
जो मनुष्य को शभ्रन्वा कर देता है । वास्तविक प्रेम तो वह है जो भगवान से
हो ! ` सांसारिक प्रेम कठा ह जीर भगवान का प्रेम सच्चा! एक को कटा
जाता ह इडके मिजाजौ यानी श्राने-जाने वाला प्रेम ग्रौर् दूसरा है, इसके
हकीकी यानी सदा रहने वाला” १५
आध्यात्मिकता की गंघ से दार्बनिक को दछीकश्रा जाती ह 1 श्ट रोक
बैठे--“'क्यों साहव, प्रेम क्या इन्द्रियां जीर मनसे परे, कोर्ट सदा वनी रहने
वाली श्राध्यात्मिक वस्तु से भी हो सकता है ? ”
“हो क्यों नहीं सकता” -भगवान के प्रेम का समर्थन करने वाले सज्जन
नें कहा, “हो ग्यों नहीं सक्ता ? चाव्यात्मिक प्रेम शारीरिकम्रेम की तरह
क्षणिक नहीं । प्रेम तो भगवान का रूप है श्रौर भगवान प्रेम रूप हैं । महात्मा
गाची ने कटा ह ००००००५० ०००००००
“किसी ने कहा सही” दारशनिक से फिर टोका, पर सवात तो यट
हकिग्रेम होता हं रख, कन, नाक रादि इन्द्रियो श्रीर् मस्तिष्क से । यह
सभी वस्तुयें शरीर का झंग हैं, भोतिक हैं रौर श्वस् भंगुर हैं । जिन वस्तुग्रो
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